कुछ वार्षिक समारोहों में भाग लेने का हुक्म
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कुछ वार्षिक समारोहों में भाग लेने का हुक्म
[هندي – Hindi – fgUnh ]
मुहम्मद अल-हमूद अन्नजदी साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
حكم المشاركة في بعض الاحتفالات السنوية
محمد الحمود النجدي
موقع الإسلام سؤال وجواب
عطاء الرحمن ضياء الله
कुछ वार्षिक समारोहों में भाग लेने का हुक्म
प्रश्नः
कुछ वार्षिक अवसरों और समारोहों जैसे- अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस, अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस और अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस, इसी तरह कुछ धार्मिक अनुष्ठानों जैसे- इस्रा व मेराज (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रातों-रात मक्का से मस्जिदे अक़्सा तक, फिर वहाँ से आकाश तक की यात्रा की सालगिरह), मीलादुन्नबी (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जन्म दिवस) और हिज्रत (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मक्का से मदीना की ओर प्रवास की सालगिरह) के समारोहों में भाग लेने में शरीअत का क्या हुक्म है? और वह इस प्रकार कि लोगों को याद दिलाने और उन्हें नसीहत (सदुपदेश) करने के लिए व्याख्यान और इस्लामी सेमिनार का आयोजन किया जाए या कुछ पत्रक तैयार किए जाएं।
उत्तरः
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
मेरे लिए जो बात प्रत्यक्ष होती है वह यह है कि ये दिन जो प्रति वर्ष दोहराये जाते हैं और उन्हें मनाने के लिए आयोजित किए जाने वाले समारोह, ये नव अविष्कारित त्योहारों और मनगढ़त विधानों में से हैं, जिनकी अल्लाह ने कोई सनद नहीं उतारी है। जबकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ''और तुम नये अविष्कार कर लिए गए मामलों से बचो, क्योंकि हर नवाचार बिदअत है और हर बिदअत पथ-भ्रष्टता (गुमराही) है।'' इसे अहमद, अबू दाऊद और तिर्मिज़ी आदि ने रिवायत किया है।
तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''हर जाति (क़ौम) का एक त्योहार होता है और यह हमारा त्योहार है।'' (बुखारी व मुस्लिम).
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने अपनी किताब ''इक़्तिज़ाउस सिरातिल मुस्तक़ीम लि-मुख़ालफति असहाबिल जहीम'' में उन अवसरों और नवीन अविष्कारित त्योहारों की निंदा के बारे मे जिनका विशुद्ध शरीअत में कोई आधार नहीं है, विस्तार से बात किया है। तथा इनके अन्दर धर्म से संबंधित जो खराबी पाई जाती है, उसे हर एक क्या जाने बल्कि अधिकांश लोग इस प्रकार की बिदअतों की खराबी को नहीं जानते, विशेषकर यदि वे बिदअतें धर्मसंगत इबादतों के जिन्स से हैं। बल्कि बुद्धिमान लोग ही ऐसे हैं जो इसके अन्दर की कुछ खराबी को जानते और समझते हैं।
तथा लोगों पर अनिवार्य यह है कि : वे किताब और सुन्नत का पालन करें, अगरचे वे इसके अंदर भलाई और खराबी (लाभ और हानि) के मुद्दों को पूर्ण रूप से न जान सकें।
जिसने भी किसी दिन में कोई काम अविष्कार किया, जैसे कोई रोज़ा, या नमाज ईजाद करना, या कुछ खाने बनाना, या सजावट और खर्च में विस्तार इत्यादि, तो इस कार्य के पीछे दिल के अंदर एक आस्था ज़रूर होती है, और यह इसलिए क्योंकि उसके लिए यह आस्था रखना ज़रूरी होता है कि यह दिन अन्य दिनों की तुलना में बेहतर है, क्योंकि यदि उसके दिल में या जिसका वह अनुसरण कर रहा है उसके दिल में यह आस्था न होती तो दिल इस दिन और रात को विशिष्ट करने के लिए तैयार न होता, क्योंकि बिना कारण के किसी चीज़ को प्राथमिकता देना असंभव है।
ईद (त्योहार) का शब्द उस स्थान, उस समय और उस समारोह के नाम को दर्शाता है, और इन तीनों में कई चीज़ें अविष्कार कर ली गई हैं।
जहाँ तक समय का संबंध है तो इससे संबंधित बिदअतों के तीन प्रकार हैं, और इनके अंतर्गत स्थान और कार्यों से संबंधित कुछ बिदअतें आती हैं।
उनमें से एक प्रकार : ऐसा दिन है जिसे शरीअत ने महानता और सम्मान नहीं दिया है, और पूर्वजों के यहाँ उसका कोई उल्लेख नहीं है, तथा उसमें कोई ऐसी चीज़ घटित नहीं हुई है जो उसकी महानता व सम्मान का कारण बनती हो।
दूसरा प्रकार : ऐसा दिन है जिसके अंदर कोई घटना घटित हुई हो, जिस तरह कि अन्य दिनों में घटित होती है, परंतु वह उसे एक विशेष अवसर बनाने को अनिवार्य न करती हो, और न ही पूर्वज उसका सम्मान करते रहे हों।
जिसने भी ऐसा किया उसने ईसाइयों की समानता अपनाई, जो ईसा अलैहिस्सलाम की घटनाओं के दिनों को ईद (त्योहार) बना लेते हैं, या उसने यहूदियों की नकल की। हालाँकि ईद एक शरीअत (धर्म-शास्त्र) है, अतः जिसे अल्लाह ने धर्मसंगत क़रार दिया है उसका पालन किया जायेगा, अन्यथा धर्म में कोई ऐसी चीज़ नहीं पैदा की जायेगी जो उसमें से नहीं है।
इसी तरह वह भी है जो कुछ लोग ईसा अलैहिस्सलाम की जयंती में ईसाइयों की बराबरी और समानता अपनाते हुए या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रेम और सम्मान के तौर पर नई चीज़ें अविष्कार कर लेते हैं . . चुनाँचे पूर्वजों ने इन्हें नहीं किया है जबकि इसके करने की अपेक्षा पाई जाती थी और कोई रूकावट नहीं थी यदि वह भलाई का काम होता . . .
तीसरा प्रकार : ऐसा दिन जो शरीअत के अंदर सम्मानित है, जैसे कि आशूरा का दिन, अरफा का दिन, ईदुल फित्र और ईदुल अज़्हा के दिन और इनके अलावा अन्य दिन। फिर इच्छाओं के पुजारी उसमें ऐसी चीज़ें पैदा कर लेते हैं जिनके बारे में वे यह आस्था रखते हैं कि वह एक फज़ीलत (गुण और प्रतिष्ठा) है, जबकि वह एक घृणास्पद चीज़ है जिससे रोका जाना चाहिए, उदाहरण के तौर पर राफिज़ियों का आशूरा के दिन प्यासा रहने और शोक मनाने का अविष्कार कर लेना, और इनके अलावा अन्य वे मामले जिन्हें अल्लाह ने धर्म संगत क़रार दिया है न उसके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने, और न तो पूर्वजों में से और न ही पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के घर-परिवार वालों में से किसी ने उसे धर्म संगत कहा है। जहाँ तक वैद्ध बैठकों के अलावा, स्थायी रूप से कोई सभा (बैठक) निर्धारित कर लेने का मामला है जो हफ्तों, या महीनों या सालों में दोहराया जाता है, तो यह वास्तव में पाँच समय की नमाज़ों, जुमा, दोनों ईदों और हज्ज के सम्मेलनों और समारोहों की बराबरी करता है, और यही नवाचार (बिदअत) है।
इसका मूल सिद्धांत यह है किः वैद्ध इबादतें जो समय-समय पर दोहरायी जाती हैं यहाँ तक कि वह परंपरायें और विशेष अवसर बन जाती हैं, अल्लाह ने उनमें से केवब इतनी मात्रा में धर्म संगत किया है जिसके अंदर बन्दों के लिए किफायत (पर्याप्ति) है, इसलिए यदि इन सामान्य और परंपरागत बैठकों के ऊपर कोई अतिरिक्त बैठक अविष्कार कर ली गई, तो यह उस चीज़ की बराबरी करना है जिसे अल्लाह ने धर्म संगत और परंपरागत बनाया है, और इसके अंदर वह खराबी पाई जाती है जिनमें से कुछ पर चेतावनी ऊपर गुज़र चुका है, यह उस स्थिति के बिल्कुल विपरीत है जिसे आदमी अकेले या कोई विशिष्ट समूह कभी-कभार कर लेता है। सार रूप से समाप्त हुआ।
जो कुछ ऊपर गुज़र चुका उसके आधार पर : मुसलमान के लि इन दिनों में भाग लेना जायज़ नहीं है जिनका हर साल जश्न मनाया जात है, और हर साल उसे दोहराया जाता है, क्योंकि वह मुसलमानों की ईदों के समान हो जाता है जैसा कि ऊपर गुज़र चुका। लेकिन यदि उसे बार-बार दोहराया नहीं जाता है, और उसके अंदर मुसलमान उस हक़ को बयान करने पर सक्षम है जिसे वह उठाये हुए है और उसका लोगों में प्रचार कर सकता है, तो इन शा अल्लाह उसके ऊपर कोई हरज की बात नहीं है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोतः मसाइल व रसाइल / मुहम्मद अल-हमूद अन्नजदी, पृष्ठः 31