क्या पति के लिए अपनी पत्नी को हज्ज कराना ज़रुरी है?
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क्या पति के लिए अपनी पत्नी को हज्ज कराना ज़रुरी है?
] हिन्दी & Hindi &[ هندي
मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन
अनुवादः अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
2014 - 1435
﴿هل يلزم الزوج أن يحج بزوجته؟ ﴾
« باللغة الهندية »
محمد بن صالح العثيمين
ترجمة: عطاء الرحمن ضياء الله
2014 - 1435
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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।
إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، وسيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وبعد:
हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद :
क्या पति के लिए अपनी पत्नी को हज्ज कराना ज़रूरी है?
प्रश्नः
आदरणीय शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया किः मेरी एक पत्नी है जिसने हज्ज नहीं किया है, तो क्या मेरे ऊपर अनिवार्य है कि मैं उसे हज्ज कराऊँ? और क्या हज्ज में उसका खर्च मेरे ऊपर अनिवार्य है? और अगर वह मेरे ऊपर अनिवार्य नहीं है तो क्या उससे समाप्त हो जायेगा?
उत्तरः
तो शैख रहिमहुल्लाह ने इस तरह उत्तर दियाः
''यदि पत्नी ने विवाह के अनुबंध में शर्त लगाया था कि वह उसे हज्ज करायेगा, तो उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह इस शर्त को पूरा करे और उसे हज्ज कराए। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः ''तुम्हारे पूरा किए जाने का सबसे अधिक हक़दार शर्त वह है जिसके द्वारा तुम ने शरमगाहों को हलाल किया है।''[1]
जबकि अल्लाह का फरमान हैः
﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَوْفُوا بِالْعُقُودِ ﴾ [المائدة :1]
ऐ ईमान लानेवालो! प्रतिज्ञाओं का पूर्ण रूप से पालन करो।'' (सूरतुल मायदाः 1).
तथा अल्लाह ने फरमाया :
﴿ وَأَوْفُوا بِالْعَهْدِ إِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْؤُولاً ﴾ [الإسراء : 34]
और प्रतिज्ञा पूरी करो। प्रतिज्ञा के विषय में अवश्य पूछा जाएगा।'' (सूरतुल इस्राः 34).
परन्तु यदि उसने उसके ऊपर शर्त नहीं लगाई है, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए ज़रूरी नहीं है कि वह उसे हज्ज कराए। लेकिन मैं उसे कुछ बातों की वजह से हज्ज कराने की सलाह देता हूँ :
सर्व प्रथम : अज्र व सवाब प्राप्त करने के लिए, क्योंकि उसके लिए उसी की तरह अज्र व सवाब लिखा जायेगा जो उसके (यानी पत्नी के) लिए लिखा गया है, जबकि उसने हज्ज का फरीज़ा अदा कर लिया।
दूसरा : यह उन दोनों के बीच अंतरंगता और अपनेपन का कारण है और जो भी चीज़ पति और पत्नी के बीच अंतरंगता और अपनापन पैदा करनेवाली हो, तो उसका हुक्म दिया गया है।
तीसरा : इस काम पर उसकी प्रशंसा और सराहना की जाए, और उसका अनुसरण किया जाए।
अतः उसे चाहिए की अल्लाह से मदद मांगे और अपनी पत्नी को हज्ज कराए, चाहे उसने उसके ऊपर इसकी शर्त लगाई हो या शर्त न लगाई हो। लेकिन अगर उसने शर्त लगाई थी तो उसके ऊपर उसे पूरा करना अनिवार्य हो जाता है।''
''फतावा इब्ने उसैमीन'' (21/114).
[1] सहीह बुख़ारी, हदीस संख्याः (2721), सहीह मुस्लिम, हदीस संख्याः (1418).