नक़द धन की ज़कात की गणना का तरीक़ा
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Full Description
إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، وسيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وبعد:
हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद :
प्रश्नः
कुछ विद्वानों का कहना है कि जिन नक़दी धनों में ज़कात अनिवार्य है उन का निसाब (यानी ज़कात के अनिवार्य होने की न्यूनतम मात्रा) यह है कि वह 56 (छप्पन) सऊदी रियाल के बराबर हो जाए। किंतु कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि यह निसाब एक ऐसे समय में निर्धारित किया गया था जब लोगों के हाथों में मुद्रा कम थी, लेकिन आज सोने और चाँदी की क़ीमत बदल गर्इ है, जबकि ज्ञात रहे कि अतीत में 56 रियाल आजकल के दो हज़ार सऊदी रियाल (2000) के बराबर है, तो इस मुद्दे में निर्णायक हुक्म क्या है ?
उत्तरः
अल्लाह तआला ने ही अपने संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मार्गदर्शन और सत्य धर्म के साथ भेजा, और आपकी शरीअत को मानवजाति के लिए एक सर्वसामान्य और परलोक के दिन तक बाक़ी रहने वाली संपूर्ण शरीअत बनाया है, और अल्लाह सर्वशक्तिमान जानता है जो कुछ हो चुका और जो कुछ होने वाला है कि किस तरह लोगों की स्थितियों, और नक़दी के मूल्यों में परिवर्तन और बदलाव आयेगा, लोगों को उनकी कितनी आवश्यकता होगी और लोग उनसे किस तरह लाभान्वित होंगे, यहाँ तक कि दुनिया समाप्त हो जायेगी, और अल्लाह सर्वशक्तिमान ने ही अपने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर वह्य (प्रकाशना) कर धनों की ज़कात के निसाब को निर्धारित किया है, तथा इस बात को निर्धारित किया है कि उससे निकाली जाने वाली ज़कात की मात्रा को उसके हक़दारों (लाभार्थियों) को भुगतान किया जायेगा, और वह अल्लाह तआला के इस कथन में है :
﴿ إِنَّمَا الصَّدَقَاتُ لِلْفُقَرَاءِ وَالْمَسَاكِينِ وَالْعَامِلِينَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِي الرِّقَابِ وَالْغَارِمِينَ وَفِي سَبِيلِ اللَّهِ وَاِبْنِ السَّبِيلِ والله عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ﴾ [التوبة : 60]
''ख़ैरात (ज़कात) तो केवल फकीरों का हक़ है और मिसकीनों का और उस (ज़कात) के कर्मचारियों का और जिनके दिल परचाये जा रहे हों और गुलाम के आज़ाद करने में और क़र्जदारों के लिए और अल्लाह के मार्ग (जिहाद) में और मुसाफिरों के लिए, ये हुकूक़ अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर (निर्धारित) किए हुए हैं और अल्लाह तआला बड़ा जानकार हिकमत वाला है।'' (सूरतुत्तौबा : 60)
यदि निसाब और धन की ज़कात के तौर पर निकाली जाने वाली मात्रा, समय और लोगों की स्थितियों के बदलने और धनों के मूल्यों में परिवर्तन के साथ बदलने वाली होती तो अल्लाह सर्वशक्तिमान अपने बंदों पर दया करते हुए उसे अवश्य स्पष्ट करता, और अपने पैगंबर की ओर विभिन्न प्रकार के नियमों की वह्य (प्रकाशना) करता जो उन परिस्थितियों के अनुकूल होते, जिनके उपस्थित होने की अवस्था में उन्हें उनपर लागू किया जाता, किंतु उसने ऐसा नहीं किया जबकि वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी, बड़ा तत्वदर्शी व बुद्धिमान और अत्यंत दयालु व कृपालु है। यह इस बात को इंगित करता है कि ज़कात का निसाब, उसकी मात्रा, ज़कात में निकाली जाने वाली मात्रा और ज़कात के लाभार्थियों का शरीअत के द्वारा किया गया निर्धारण, क़ियामत क़ायम होने तक, समय के बीतने के साथ परिवर्तित नहीं होगा।
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे र्इश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दया और शांति अवतरित करे।
अब्दुल्लाह बिन क़ऊद (सदस्य)
अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी (उपाध्यक्ष)
अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ (अध्यक्ष)
“फतावा स्थायी समिति" (9/198-199).