ज़कात क हुक्म
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Full Description
ज़कात का हुक्म
] हिन्दी & Hindi &[ هندي
इफ्ता की स्थायी समिति
अनुवादः अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
2013 - 1434
حكم الزكاة
« باللغة الهندية »
اللجنة الدائمة للإفتاء
ترجمة : عطاء الرحمن ضياء الله
2013 - 1434
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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।
إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، وسيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وبعد:
हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद :
ज़कात का हुक्म
प्रश्नः
उस आदमी का क्या हुक्म है जो ला इलाहा इल्लल्लाह की गवाही देता है, नमाज़ क़ायम करता है, परंतु ज़कात नहीं देता है और वह इससे कभी सहमत नहीं होता है ? यदि वह मर जाता है तो उसका क्या हुक्म है, क्या उसकी नमाज़ जनाज़ा पढ़ी जायेगी या नहीं ?
उत्तरः
ज़कात इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है, जिसने उसके वुजूब (अनिवार्यता) का इनकार किया उसे उसका हुक्म बयान किया जायेगा, फिर यदि वह अपनी बात पर अटल रहता है तो वह काफिर हो जायेगा, उसकी जनाज़ा की नमाज़ नहीं पढ़ी जायेगी, और न ही उसे मुसलमानों के बब्रिस्तान में दफन किया जायेगा। लेकिन यदि उसने उसे कंजूसी करते हुए छोड़ दिया है जबकि वह उसके अनिवार्य होने पर र्इमान रखता है तो वह अवज्ञाकारी है, उसने घोर पाप किया है और इसकी वजह से वह फासिक़ (दुराचारी) है, किंतु वह काफ़िर नहीं होगा, और अगर इसी स्थिति में उसकी मृत्यु होगर्इ तो उसे गुस्ल दिया जायेगा और उसकी जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी, और उसका मामला क़ियामत के दिन अल्लाह के ज़िम्मे है।
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला (शक्ति का स्रोत) है, तथा अल्लाह तआला हमारे र्इश्दूत मुहम्मद, उनकी संतान और उनके साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।
इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति
अब्दुल्लाह बिन क़ऊद (सदस्य)
अब्दुल्लाह बिन गुदैयान (सदस्य)
अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ (अध्यक्ष)
“फतावा स्थायी समिति" (9/184 – 185).