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क्या यह हदीस सहीह है कि "रमज़ान का रोज़ा उठाया नहीं जाता यहाँ तक कि ज़कातुल फित्र अदा कर दिया जाये" ? और यदि मुसलमान रोज़ेदार ज़रूरतमंद है, ज़कात के निसाब का मालिक नहीं है तो क्या उक्त हदीस के सहीह होने के कारण या उसके अलावा अन्य सुन्नत से प्रमाणित सही शरई प्रमाण के कारण उस पर ज़कातुल फित्र का भुगतान करना अनिवार्य है ?