आस्था और धर्मशास्त्र के मामलों में अज्ञानता के कारण कौन सा व्यक्ति क्षमा के योग्य है?
वे कौन से लोग हैं जो अज्ञानता के कारण क्षम्य (मा’ज़ूर) समझे जायेंगे ? और क्या आदमी धर्मशास्त्र के मामलों में अपनी अज्ञानता के कारण क्षम्य समझा जायेगा ? या अक़ीदा और तौहीद (एकेश्वरवाद) के मामलों में क्षम्य समझा जायेगा ? और इस मामले के प्रति विद्वानों का क्या कर्तव्य है ?