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आदरणीय शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया किः अगर मुसलमान किसी ईसाई या उसके अलावा किसी अन्य काफिर (अविश्वासी) के साथ खाता या पीता है, तो क्या इसे हराम समझा जायेगा? और यदि वह हराम है, तो हम अल्लाह तआला के फरमान : ﴿وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حِلٌّ لَكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلٌّ لَهُمْ ﴾ [المائدة : 5] ’’जिन लोगों को किताब दी गई है (यानी यहूदी और ईसाइ) उनका खाना तुम्हारे लिए हलाल है, और तुम्हारा खाना उनके लिए हलाल है।’’ (सूरतुल मायदाः 5) के बारे में क्या कहेंगे ?

    मुसलमान के काफ़िर के साथ खाना खाने का हुक्म

    حكم أكل المسلم مع الكافر

    ] हिन्दी & Hindi &[ هندي

    आदरणीय शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़

    سماحةالشيخ عبد العزيز بن عبد الله بن باز

    अनुवादः अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह

    ترجمة: عطاء الرحمن ضياء الله

    2014 - 1436

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    बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

    मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।

    إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، وسيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وبعد:

    हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद :

    मुसलमान के काफिर के साथ खाना खाने का हुक्म

    प्रश्नः

    अगर मुसलमान किसी ईसाई या उसके अलावा किसी अन्य काफिर (अविश्वासी) के साथ खाता या पीता है, तो क्या इसे हराम समझा जायेगा? और यदि वह हराम है, तो हम अल्लाह तआला के फरमान :

    ﴿وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حِلٌّ لَكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلٌّ لَهُمْ ﴾ [المائدة : 5]

    ''जिन लोगों को किताब दी गई है (यानी यहूदी और ईसाइ) उनका खाना तुम्हारे लिए हलाल है, और तुम्हारा खाना उनके लिए हलाल है।'' (सूरतुल मायदाः 5) के बारे में क्या कहेंगे ?

    उत्तरः

    हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

    काफिर के साथ खाना हराम नहीं है, यदि उसकी आवश्यकता पड़ जाए या धार्मिक हित उसकी अपेक्षा करता हो। किन्तु आप उन्हें दोस्त नहीं बनायेंगे कि बिना किसी धार्मिक कारण, या किसी धार्मिक हित के उनके साथ खायें पियें। तथा आप उनका दिल बहलायेंगे न उनके साथ हँसी-चुहल करेंगे। लेकिन यदि इसकी ज़रूरत पेश आ जाए जैसे कि मेहमान के साथ खाना, या उन्हें अल्लाह की ओर आमंत्रित करने और उन्हें सत्य की ओर मार्गदर्शन करने के लिए, या अन्य धार्मिक कारणों के लिए : तो इसमें कोई हरज (आपत्ति) की बात नहीं है।

    हमारे लिए अह्ले किताब (यहूदियों व ईसाइयों) के खाने के जायज़ होने की अपेक्षा यह नहीं है कि बिना किसी ज़रूरत और धार्मिक हित के उन्हें दोस्त और पार्श्व वर्ती (घनिष्ठ मित्र) बनाया जाए, तथा न वह इस बात की अपेक्षा करता है कि उनके साथ खाया पिया जाए। और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला है।'' अंत हुआ।

    ''फतावा अश्शैख इब्ने बाज़'' (23/38).