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मैं जानती हूँ कि घर में कुत्ता रखना हराम (निषिद्ध) है, किंतु मेरे पास ग्यारह साल से एक कुत्ता है, फिर मैं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, मेरे पास कुत्ता मेरे इस्लाम स्वीकार करने के पूर्व से ही है, तो क्या मेरी नमाज़ क़बूल होगी ॽ जब कुत्ता मर जायेगा तो मैं दूसरा कुत्ता कभी भी नहीं लाऊँगी ; क्योंकि अब मुझे पता है कि यह हराम है।

    वह एक नव मुस्लिम है और अपने पास कुत्ता रखना चाहती है

    أسلَمَتْ حديثا وتريد إبقاء الكلب عندها

    ] fgUnh - Hindi -[ هندي

    अनुवाद : साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

    समायोजन : साइट इस्लाम हाउस

    ترجمة: موقع الإسلام سؤال وجواب
    تنسيق: موقع islamhouse

    2012 - 1433

    वह एक नव मुस्लिम है और अपने पास कुत्ता रखना चाहती है

    मैं जानती हूँ कि घर में कुत्ता रखना हराम (निषिद्ध) है, किंतु मेरे पास ग्यारह साल से एक कुत्ता है, फिर मैं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, मेरे पास कुत्ता मेरे इस्लाम स्वीकार करने के पूर्व से ही है, तो क्या मेरी नमाज़ क़बूल होगी ॽ जब कुत्ता मर जायेगा तो मैं दूसरा कुत्ता कभी भी नहीं लाऊँगी ; क्योंकि अब मुझे पता है कि यह हराम है।

    हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए है।

    सर्व प्रथम:

    इस बात से अवगत होना उचित है कि इस्लाम का अर्थ है अल्लाह तआला के आदेश के प्रति समर्पण करना, उसकी शरीअत (क़ानून) की आज्ञाकारिता और अल्लाह सर्वशक्तिमान की हिकमत (तत्वदर्शिता) को स्वीकार करना, क्योंकि इस्लाम का सार अल्लाह सर्वशक्तिमान की गुलामी (उपासना) को परिपूर्ण करने में निहित है, और बंदा अल्लाह तआला की गुलामी, उपासना और उसकी ओर अपनी निर्धनता में जितना अधिक होगा, अल्लाह तआला उसकी महिमा, प्रतिष्ठा, और तौफीक़ में वृद्धि कर देगा तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान के निकट उसकी मान्यता (स्वीकार्यता) बढ़ जायेगी।

    मामले का आधार - ऐ सम्मानित प्रश्नकर्ता- “अल्लाह की महब्बत और उसके ईश्दूतों और संदेष्टाओं -उन पर अल्लाह की दया और शांति अवतरित हो - की महब्बत पर स्थापित है, जैसाकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है:

    ﴿ قُلْ إِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ ﴾ [ آل عمران: 31]

    “कह दीजिए अगर तुम अल्लाह तआला से महब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी (अनुसरण) करो, स्वयं अल्लाह तआला तुम से महब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ कर देगा और अल्लाह तआला बड़ा माफ करने वाला और बहुत मेहरबान (दयालू) है।" (सुरत आल इम्रानः 31)

    अतः प्यार व महब्बत पर ही आकाश और धरती स्थापित है, और इसी से मुसलमान का दिल जीवित होता है जबकि वह अल्लाह की खुशी को तलाश कर रहा होता है, बल्कि मुसलमान और गैर मुसलमान के बीच यही अंतर है ; क्योंकि मुसलमान अल्लाह की शरीअत (क़ानून) और उसकी त़कदीर का अल्लाह के सम्मान और महब्बत के तौर पर आज्ञाकारी और पालनकर्ता होता है, परंतु एक गैर मुस्लिम यह सोचता है कि “अल्लाह के लिए गुलामी" का मतलब अर्थ और भावना से रिक्त कुछ नियमों और सिद्धांतों की जबरन पैरवी है, जबकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है:

    ﴿ لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ قَدْ تَبَيَّنَ الرُّشْدُ مِنَ الْغَيِّ ﴾ [ البقرة : 256]

    “दीन में किसी तरह की ज़बरदस्ती (दबाव) नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी है।" (सूरतुल बक़रा : 256)

    दूसरा :

    जब मुसलमान को इस बात का पता चल जाता है कि अल्लाह तआला की महब्बत का उसके सिवा हर चीज़ की महब्बत पर मुक़द्दम (पूर्व) होना अनिवार्य है, और उसकी आज्ञाकारिता, अल्लाह की प्रसन्नता और उसकी महब्बत का विरोध करने वाली हर इच्छा और चाहत पर प्राथमिकता रखती है, और यह कि वास्तविक महब्बत की निशानी अल्लाह की आज्ञाकारिता और हर छोटी बड़ी चीज़ में उसके आदेश का पालन करना है : तो उसके लिए अपने मन की इच्छा का विरोध करना और दुनिया के मामलों में से हर चीज़ को त्याग देना आसान हो जाता है, यदि उसे त्यागने में सर्वसंसार के पालनहार की प्रसन्नता और खुशी हो। तथा उसके ऊपर अल्लाह सर्वशक्तिमान के लिए अपने जान व माल को अर्पण (निछावर) कर देना आसान हो जाता है, यदि वह बलिदान अल्लाह को प्रिय और उस की प्रसन्नता का पात्र है, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :

    ﴿إِنَّ اللَّهَ اشْتَرَى مِنَ الْمُؤْمِنِينَ أَنْفُسَهُمْ وَأَمْوَالَهُمْ بِأَنَّ لَهُمُ الْجَنَّةَ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَيَقْتُلُونَ وَيُقْتَلُونَ وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّا فِي التَّوْرَاةِ وَالْإِنْجِيلِ وَالْقُرْآنِ وَمَنْ أَوْفَى بِعَهْدِهِ مِنَ اللَّهِ فَاسْتَبْشِرُوا بِبَيْعِكُمُ الَّذِي بَايَعْتُمْ بِهِ وَذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ ﴾ [التوبة:111]

    “बेशक अल्लाह ने मुसलमानों से उन की जानों और मालों को जन्नत के बदले खरीद लिया है, वह अल्लाह की राह में लड़ते हैं जिस में क़त्ल करते हैं और क़त्ल होते हैं, उस पर सच्चा वादा है तौरात, इंजील और क़ुरआन में। और अल्लाह से अधिक अपने वादे का पालन कौन कर सकता है ॽ इसलिए तुम अपने इस सौदे पर जो कर लिए हो खुश हो जाओ, और यह बड़ी कामयाबी है।" (सूरतुत्तौबा : 111)

    तीसरा :

    बिना किसी मोतबर लाभ और फायदे के कुत्ता रखना मुसलमान के लिए वर्जित (हराम) और निषिद्ध है, उस के कारण उस के अज्र व सवाब में कमी हो जाती है, भले ही वह उस के कार्यों को पूर्णतया नष्ट न करता हो और उस के कारण उस की नमाज़ या उस के अलावा अन्य कार्य अस्वीकृत न होता हो, परंतु उस की नेकी का अज्र बहुत ही कम हो जाता है, जिस से मुसलमान का प्रतिदिन घाटा होता है।

    अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस ने कोई कुत्ता रखा उसके अमल से प्रतिदिन एक क़ीरात कम हो जाता है सिवाय खेती के कुत्ता या मवेशी के कुत्ता के।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3324) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1575) ने रिवायत किया है।

    तथा प्रश्न संख्या : (69840) का उत्तर देखिये।

    निष्कर्ष : यह कि जितनी लंबी अवधि तक आप ने कुत्ता रखा है यह उस के रखने को वैध नहीं ठहराता है, जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस से मना किया है, और इसके कारण बंदे के अज्र व सवाब और उसके अमल में इस महान कमी से सावधान किया है, यद्यपि यह नमाज़ की वैधता और शुद्धता में रूकावट नहीं है।

    जहाँ तक पिछली अवधि की बात है : तो यदि आप उस समय कुत्ता रखने के हराम होने को नहीं जानती थीं तो इन शा-अल्लाह (अल्लाह की इच्छा से) उस में कोई बात नहीं है और उस के कारण आप के अमल (नेकी) में कमी नहीं होगी।