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सफ़र के महीने का संछिप्त वर्णन

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सफ़र के महीने का संछिप्त वर्णन

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فتوى مترجمة إلى اللغة الهندية، عبارة عن سؤال أجاب عنه موقع الإسلام سؤال وجواب، ونصه: «هل لشهر صفر مزية مثل شهر محرم؟ أرجو إلقاء الضوء على ذلك بشيء من التفصيل. وقد سمعت أن بعض الناس يتشاءم في هذا الشهر، فلماذا؟».

सफ़र के महीने का संछिप्त वर्णन

[هندي – HindifgUnh ]

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

—™

अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह

نبذة عن شهر صفر

موقع الإسلام سؤال وجواب

—™

عطاء الرحمن ضياء الله

सफ़र के महीने का संछिप्त वर्णन

प्रश्नः

क्या मुहर्रम के महीने के समान सफर के महीने की भी कोई विशेषता है? आशा है कि इस पर विस्तार के साथ प्रकाश डालेंगे। तथा मैं ने कुछ लोगों से सुना है कि वे इस महीने से अपशकुन लेते हैं, तो इसका क्या कारण है?

उत्तरः

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा अल्लाह के पैगंबर पर दया और शांति अवतरित हो।

अल्लाह की स्तुति और पैगंबर पर दुरूद के बाद !

सफर का महीना बारह हिज्री महीनों में से एक है और वह मुहर्रम के महीने के बाद आता है। कुछ लोगों का कहना है कि : इस महीने का नाम "सफर" इस लिए रखा गया है क्योंकि मक्का अपने वासियों से शून्य (खाली) हो जाता था जब वे इस महीने में यात्रा करते थे। तथा यह भी कहा गया है कि : लोगों ने इस महीने का नाम "सफर" इसलिए रखा क्योंकि वे इस महीने में क़बीलों से लड़ाई करते थे, तो जिस से भी मुठभेड़ होती थे उसे सामान से शून्य (खाली हाथ) कर देते थे (अर्थात उसके सामान को छीन लेते थे तो वह खाली हाथ हो जाता था उसके पास कोई सामान नहीं रह जाता था)। देखिये : लिसानुल अरब लि-इब्ने मंज़ूर, भागः 4, पृष्ठः 462 - 463..

इस महीने के बारे में निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा की जायेगी :

1- जाहिलियत (अज्ञानता) के समय काल के अरबों के यहाँ इसके बारे में जो कुछ वर्णित है।

2- जाहिलियत के लोगों के विरोध में शरीअत के अंदर वर्णित चीज़ें।

3- इस्लाम के अनुयायियों के यहाँ इस महीने के अंदर पाये जाने वाले नवाचार (बिद्अतें) और भ्रष्ट आस्थायें (झूठी मान्यताएं)

4- इस महीने के अंदर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन में घटित होने वाले महत्वपूर्ण गज़वात (सैन्य अभियान) और घटनाएँ।

5- सफर के महीने के बारे में झूठी और मनगढ़त हदीसों में वर्णित चीज़ें।

सर्व प्रथम :

जाहिलियत के समय काल के अरबों के यहाँ इस महीने के बारे में वर्णित चीज़ें:

सफर के महीने में अरबों के अंदर दो बड़ी बुराइयाँ पाई जाती थीं :

पहली : उसे आगे और पीछे करके उसमें खिलवाड़ करना।

दूसरी : उस से अपशकुन लेना।

1- यह बात सर्वज्ञात है कि अल्लाह तआला ने वर्ष की रचना की और उसके महीनों की संख्या बारह रखी। उनमें से चार महीनों को अल्लाह तआला ने हुर्मत (सम्मान) वाले बनाये हैं, जिनके अंदर, उनके महत्व को बढ़ाने हेतु, लड़ाई करना वर्जित क़रार दिया है, वे महीने : ज़ुल-क़ादा, ज़ुल-हिज्जा, मुहर्रम और रजब हैं।

इसकी पुष्टि अल्लाह की किताब में उसका यह फरमान है :

﴿إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ عِندَ اللهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْراً فِي كِتَابِ اللهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَات وَالأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلاَ تَظْلِمُواْ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ﴾ [سورة التوبة : 36 ]

"अल्लाह के निकट महीनों की संख्या अल्लाह की किताब में बारह (12) है उसी दिन से जब से उसने आकाशों और धरती को पैदा किया है, उनमें से चार हुर्मत व अदब (सम्मान) वाले हैं। यही शुद्ध धर्म है, अतः तुम इन महीनों में अपनी जानों पर अत्याचार न करो।" (सूरतुत-तौबाः 36)

मुश्रिकों (अनेकेश्वरवादियों) को इस बात का ज्ञान था, किन्तु वे अपनी इच्छा के अनुसार उसे आगे और पीछे किया करते थे। उसी में से यह भी था किः उन्हों ने "मुहर्रम" के स्थान पर "सफर" के महीने को कर दिया था !

तथा वे यह आस्था रखते थे कि हज्ज के महीनों में उम्रा करना बहुत बड़े पापों (सबसे बुरी चीज़ों) में से है, इस बारे में विद्वानों के कुछ कथन निम्नलिखित हैं:

(क) - इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : वे लोग हज्ज के महीनों में उम्रा करना धरती पर सबसे बड़े पापों में से समझते थे, और मुहर्रम के महीने को सफर का महीना घोषित कर देते थे और कहते थे कि : जब ऊँट की पीठ सहीह (स्वस्थ) हो जाये, निशान मिट जाये और सफर का महीना बीत जाये : तो उम्रा करने वाले के लिए उम्रा करना हलाल हो गया। इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1489) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1240) ने रिवायत किया है।

(ख) - इब्नुल अरबी कहते हैं :

दूसरा मुद्दा : नसी (विलंब यानी महीनों को आगे-पीछे करने) का तरीक़ा :

इसके बारे में तीन कथन हैं :

प्रथम :

इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि जुनादा बिन औफ बिन उमैया किनानी हर वर्ष हज्ज के मौसम में आता था और यह आवाज़ लगाता था: सुनो, अबू सुमामा को न बुरा कहा जायेगा और न उसका उत्तर दिया जायेगा। सुनो, पहले वर्ष सफर का महीना हलाल है। चुनाँचे हम उसे एक साल हराम ठहरा लेते थे और एक साल हलाल रखते थे। वे लोग हवाज़ुन, गतफान और बनी सलीम के साथ थे।

एक रिवायत के शब्द इस प्रकार हैं किः वह कहता था : हम ने मुहर्रम को पहले कर दिया है और सफर को विलंब कर दिया है। फिर दूसरे वर्ष आता और कहता : हम ने सफर के महीने को हराम कर दिया है और मुहर्रम को विलंब कर दिया है, तो यही महीनों को विलंब और पीछे करना है।

दूसरा : वृद्धि करना : क़तादा का कहना है : पथ-भ्रष्टों की एक क़ौम ने जानबूझ कर हराम महीनों के अंदर सफर के महीने की वृद्धि कर दी, चुनाँचि उनका एक व्यक्ति हज्ज के मौसम में खड़े होकर कहता था : सुनो! तुम्हारे देवताओं ने इस वर्ष मुहर्रम के महीने को हराम घोषित किया है। अतः वे उसे उस वर्ष हराम समझते थे। फिर वह आने वाले वर्ष खड़े होकर कहता था: सावधान! तुम्हारे देवताओं ने सफर के महीने को हराम कर दिया है। चुनाँचि वे उसे उस वर्ष हराम समझते थे, और कहते थे : दो सफर। तथा इब्ने वहब और इब्नुल क़ासिम ने इमाम मालिक से इसी प्रकार रिवायत किया है, उन्हों ने कहा : जाहिलियत के लोग उसे दो सफर क़रार देते थे, इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "सफर का महीना अशुभ नहीं है।" इसी तरह अश्हुब ने भी उनसे रिवायत किया है।

तीसरा : हज्ज को परिवर्तित करना : मुजाहिद ने एक अन्य सनद के साथ फरमाया : ﴿إنما النسيء زيادة في الكفر ("नसी" यानी महीनों का आगे पीछे करना - कुफ्र के अंदर वृद्धि है). उन्हों ने कहा: दो वर्ष उन्हों ने ज़ुल-हिज्जा के महीने में हज्ज किया, फिर दो वर्ष मुहर्रम में हज्ज किया, फिर दो वर्ष सफर के महीने में हज्ज किया, इस तरह वे प्रति वर्ष हर महीने में दो वर्ष तक हज्ज करते थे यहाँ तक कि अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु का हज्ज ज़ुल-क़ादा में पड़ा, फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़ुल-हिज्जा के महीने में हज्ज किया। तो यही नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सहीह हदीस में अपने भाषण में यह फरमान है कि : "ज़माना घूम फिर कर उसी अवस्था पर आ गया है जिस पर उस दिन था जिस दिन अल्लाह तआला ने आकाशों और धरती की रचना की।" इसे इब्ने अब्बास आदि ने रिवायत किया है और ये शब्द उन्हीं के हैं। उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "ऐ लोगो! मेरी बात सुनो, क्योंकि मुझे पता नहीं कि शायद मैं तुम से इस दिन के बाद इस स्थान पर न मिल सकूँ। लोगो! तुम्हारे खून और तुम्हारे धन उस दिन तक जिस दिन तुम अपने पालनहार से मिलोगे, उसी तरह हराम और निषिद्ध हैं जिस तरह कि तुम्हारा यह दिन तुम्हारे इस महीने में, तुम्हारे इस नगर में हराम (वर्जित) है। निःसंदेह तुम अपने पालनहार से मुलाक़ात करोगे और वह तुमसे तुम्हारे कार्यों के बारे में पूछताछ करेगा। मैंने तुम्हें सब कुछ पहुँचा दिया। अतः जिस व्यक्ति के पास भी कोई अमानत (धरोहर) रखी हो तो वह उसे उस आदमी के हवाले कर दे जिसने उसे उसपर अमीन बनाया है। तथा हर प्रकार का सूद मिटा दिया गया है, और तुम्हारे लिए तुम्हारी मूल पूँजी है, न तुम अत्याचार करोगे और न ही तुम पर अत्याचार किया जायेगा। अल्लाह तआला ने फैसला कर दिया है कि कोई सूद नहीं है, तथा अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सब सूद व्यर्थ है, और जाहिलियत के समय काल का प्रत्येक खून व्यर्थ कर दिया गया, और सबसे पहले मैं तुम्हारे जिस खून को समाप्त कर रहा हूँ वह रबीआ बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब के बेटे का खून है, वह बनी लैस में दूध पी रहा था कि हुज़ैल के क़बीले ने उसकी हत्या कर दी, वह जाहिलियत का पहला खून है जिस से मैं आरंभ कर रहा हूँ।

अल्लाह की स्तुति के बाद ! लोगो, शैतान इस बात से निराश हो चुका है कि तुम्हारी धरती में उसकी पूजा की जाए, किंतु इसके अलावा चीज़ों में जिन्हें तुम तुच्छ समझते हो, उसकी इताअत की जायेगी और वह उससे प्रसन्न होगा। अतः लोगो! अपने धर्म पर उससे सावधान रहो। ''महीनों के क्रम में परिवर्तन (आगे-पाछे) करना कुफ्र के अंदर वृद्धि है जिसके द्वारा उन लोगों को पथभ्रष्ट किया जाता है जो नास्तिक हैं, एक साल तो उसे हलाल ठहरा लेते हैं, और एक साल उसी को हुर्मत (सम्मान) वाला कर लेते हैं, ताकि अल्लाह ने जो महीने हराम ठहराए हैं, उसकी गिंती पूरी कर लें। फिर उसे हलाल ठहरा लें जिसे अल्लाह ने हराम किया है।'' और ''ज़माना घूम फिरकर अपनी उसी स्थिति पर आ चुका है जिस पर वह आकाशों और धरती की रचना के समय था। अल्लाह के निकट महीनों की संख्या बारह (12) है, जिनमें से चार महीने हुर्मत (सम्मान) वाले हैं : तीन लगातार हैं, और (चौथा) मुज़र का रजब है जो जुमादा और शाबान के बीच में आता है।"

"अहकामुल क़ुरआन'' (2/503 – 504).

2- जहाँ तक सफर के महीने से अपशकुन लेने का संबंध है तो यह जाहिलियत के लोगों के यहाँ सुप्रसिद्ध था, और उसका अवशेष आज तक इस्लाम से संबंध रखने वाले कुछ लोगों में मौजूद है।

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "प्राकृतिक रूप से कोई संक्रमण प्रभावी नहीं है, न कोई बुरा शकुन है, न उल्लू के बोलने का कोई प्रभाव है, और न ही सफर का महीना (मनहूस या अशुभ) है, तथा कोढ़ी से उसी तरह भागो जिस तरह कि तुम शेर से भागते हो।"

इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5387) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2220) ने रिवायत किया है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

"सफर" की कई व्याख्याएं की गई हैं :

पहली : इस से अभिप्राय सफर का परिचित महीना है, जिस से अरब के लोग अपशकुन लेते थे।

दूसरी : वह पेट की एक बीमारी है जो ऊँट को लग जाती है और एक ऊँट से दूसरे ऊँट को स्थानांतरित हो जाती है (यानी संक्रमित होती है)। इस प्रकार उसका "अदवा" पर अत्फ किया जाना, खास को आम पर अत्फ करने के अध्याय से है। (इसका अर्थ यह है कि पहले सामान्य रूप से किसी भी संक्रमण का खंडन किया गया है, फिर उसके बाद एक खास संक्रमण का खंडन किया गया है जो ऊँट से संबंधित है। यह अरबी भाषा की एक शैली है कि आम के बाद खास का उल्लेख किया जाता है)

तीसरी : सफर का मतलब सफर का महीना है, और इससे अभिप्राय वह विलंब है जिसके द्वारा नास्तिकों को पथभ्रष्ट किया जाता है, चुनाँचे वे मुहर्रम के महीने को सफर के महीने तक विलंब कर देते थे, उसे एक साल हलाल ठहरा लेते थे और एक साल हराम रखते थे।

इन व्याख्याओं में सबसे स्पष्ट और निकट यह है कि उससे मुराद सफर का महीना है जिस से वे लोग जाहिलियत के समय काल में अपशकुन लेते थे।

ज़माना और काल का प्रभाव डालने और अल्लाह सर्वशक्तिमान की तक़्दीर (अनुमान) में कोई हस्तक्षेप नहीं है, अतः वह अपने अलावा अन्य ज़मानों के समान है जिसमें अच्छाई और बुराई दोनों मुक़द्दर (अनुमानित) होती हैं।

तथा कुछ लोग जब सफर के महीने में - उदाहरण के तौर पर – उसकी पचीस तारीख को किसी विशिष्ट कार्य से फारिग होते हैं तो उसकी तिथि इस प्रकार लिखते हैं : वह सफर अल-खैर (भलाई वाले सफर के महीने) की पचीस तारीख को फारिग हुआ। तो यह बिद्अत का उपचार बिदअत के द्वारा करने के अध्याय से है, क्योंकि वह न तो खैर का महीना है और न ही शर व बुराई का ; इसी कारण कुछ सलफ (पूर्वजों) ने उस व्यक्ति का खण्डन किया है जो उल्लू को बोलते हुए सुनकर कहता है कि : "अल्लाह ने चाहा तो खैर (अच्छा) ही होगा।"

क्योंकि उसे न अच्छा कहा जायेगा और न ही बुरा, बल्कि अन्य पक्षियों के समान वह भी बोलता है।

ये चार चीज़ें जिनका नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खण्डन किया है, अल्लाह तआला पर तवक्कुल (विश्वास व भरोसा) और दृढ़ संकल्प की अनिवार्यता को इंगित करती हैं, और यह कि मुसलमान इन बातों के सामने कमज़ोर न बने।

जब मुसलमान के दिल में ये चीज़ें आ जाती हैं तो वह दो हालतों से खाली नहीं होता है :

पहली : या तो वह उसके सामने अपने आपको समर्पित कर देता है इस प्रकार कि वह आगे बढ़ता या उस से रूक जाता है, तो ऐसी स्थिति में उसने अपने कार्यों को ऐसी चीज़ से संबंधित कर दिया जिसकी कोई सच्चाई नहीं है।

दूसरी : यह कि वह उसके सामने अपने आप को समर्पित नहीं करता है, इस प्रकार कि वह अपने कार्य को जारी रखता है और कोई परवाह नहीं करता है, परंतु उसके मन में एक तरह का गम या चिंता बाक़ी रहती है। यह यद्यपि पहली अवस्था से कमतर है, किंतु अनिवार्य यह है कि वह इन चीज़ों के प्रभाव को कदापि स्वीकार न करे, बल्कि वह सर्वशक्तिमान अल्लाह पर भरोसा और विश्वास रखने वाला हो . . .

तथा इन चार चीज़ों के अंदर इंकार का अर्थ इनके अस्तित्व का इंकार नहीं है, क्योंकि ये चीज़ें विद्यमान हैं, बल्कि इनके प्रभावकारी होने का इंकार है। इसलिए कि प्रभावकारी केवल अल्लाह तआला है। अतः जिसका कारण ज्ञात है वह एक शुद्ध कारण है, और जिसका कारण भ्रमित और काल्पनिक है वह एक असत्य (झूठा) कारण है, और यह उसके स्वयं प्रभावकारी होने तथा उसके प्रभावी होने का कारण होने का इंकार और खण्डन किया गया है . . .

"मजमूओ फतावा अश्शैख इब्ने उसैमीन" (2/113, 115).

दूसरा :

जाहिलियत के लोगों के विरोध में शरीअत में वर्णित चीज़ें।

सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस पीछे गुज़र चुकी है, और उसमें इस बात का वर्णन है कि सफर के महीने के बारे में जाहिलियत के लोगों का अक़ीदा खंडित और घृणित है। क्योंकि वह अल्लाह के महीनों में से एक महीना है जिसकी स्वयं कोई इच्छा नहीं है बल्कि वह अल्लाह तआला के उसे नियंत्रित करने से चलता है।

तीसरा :

इस्लाम के अनुयायियों के अंदर इस महीने में पाई जाने वाली बिद्अतें (नवाचार) और भ्रष्ट मान्यतायें

1- स्थायी समिति से प्रश्न किया गया :

हमारे देश में कुछ उलमा (धर्म का ज्ञान रखने वालों) का यह भ्रम है कि इस्लाम धर्म में एक नफ्ल (स्वैच्छिक) नमाज़ है जो सफर के महीने की अंतिम बुधवार को चाश्त के समय एक सलाम के साथ पढ़ी जायेगी, प्रति रकअत में सूरतुल फातिहा और सत्तरह (17) बार सूरतुल कौसर, पचास (50) बार सूरतुल इख़्लास और एक-एक बार मुअव्वज़तैन (क़ुल अऊज़ो बि-रब्बिन्नास और क़ुल अऊज़ो बि-रब्बिल फलक़) पढ़ी जायेगी, हर रकअत में इसी तरह किया जायेगा और सलाम फेर दिया जायेगा, और जब सलाम फेरा जायेगा तो तीन सौ साठ (360) बार :

﴿الله غالب على أمره ولكن أكثر الناس لا يعلمون ﴾

(अल्लाहो ग़ालिबुन अ़ला अमरिहि वला-किन्ना अक्सरन्नासि ला या'लमून) पढ़ना शुरू कर दिया जायेगा, तथा तीन बार जौहरुल कमाल (तीजानी पद्वित का एक तथाकथित दरूद) पढ़ा जायेगा, और इसका अंत

﴿سبحان ربك رب العزة عما يصفون، وسلام على المرسلين ، والحمد لله رب العالمين ﴾

"सुब्हाना रब्बिका रब्बिल इज़्ज़ति अ़म्मा यसिफून, व सलामुन अलल-मुर्सलीन, वल-हम्दो लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" पर किया जायेगा।

तथा गरीबों को कुछ रोटी दान किया जाये। इस आयत की विशेषता यह है कि यह उस विपदा को टाल देती है जो सफर के महीने की अंतिम बुधवार को उतरती है।

उनका यह भी कहना है कि प्रति वर्ष तीन सौ बीस हज़ार (320,000) विपदायें (बलायें) उतरती हैं, और ये सभी सफर के महीने की अंतिम बुधवार को उतरती हैं। इसलिए वह साल का सबसे अधिक कठिन दिन होता है। अतः जिस व्यक्ति ने यह नमाज़ उपर्युक्त तरीक़े पर पढ़ी, उसे अल्लाह तआला अपनी कृपा से उस दिन उतरने वाली सभी आपदाओं से सुरक्षित रखेगा, और उस वर्ष में कोई आपदा उसके आसपास नहीं आएगी। और जो उसे औपचारिक रूप से करने में सक्षम नहीं है जैसेकि बच्चे, तो वे उससे पी लेंगे, तो क्या यही समाधान है?

तो स्थायी समिति के उलमा ने इसका निम्नलिखित उत्तर दिया:

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है तथा शांति और दया अवतरित हो उसके पैगंबर और उनके परिवार और साथियों पर, इसके बाद :

प्रश्न में उपर्युक्त इस नफ्ल नमाज़ के बारे में किताब या सुन्नत के अंदर हम कोई आधार (प्रमाण) नहीं जानते हैं, तथा यह बात प्रमाणित नहीं है कि इस उम्मत के पूर्वजों तथा बाद में आने वाले सदाचारियों में से किसी ने इस नफ्ल पर अमल किया है, बल्कि यह एक घृणित बिद्अत (नवाचार) है।

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमाया: "जिस व्यक्ति ने कोई ऐसा काम किया जिस पर हमारा आदेश नहीं है, वह अस्वीकृत है।"

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस व्यक्ति ने हमारे इस मामले में कोई ऐसी चीज़ अविष्कार की जिसका उस से कोई संबंध नहीं है, वह अस्वीकृत है।"

जिस वयक्ति ने इस नमाज़ को और जो कुछ उसके साथ उल्लेख किया गया है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर, या सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम में से किसी की ओर मंसूब किया: तो उसने बहुत बड़ा झूठ गढ़ा। उसके ऊपर अल्लाह की तरफ से झूठों की वह सज़ा उतरे जिसका वह पात्र है।

"फतावा स्थायी समिति" (2 / 354).

2- शैख मुहम्मद अब्दुस्सलाम अल-शुक़ैरी कहते हैं :

जाहिलों की यह आदत बन गई है कि वे सफर के महीने की अंतिम बुधवार को सलामती (शांति) की आयतें जैसे कि (سَلامٌ عَلَى نُوحٍ فِي الْعَالَمِينَ) "सलामुन अला नूहिन फिल आलमीन"... लिखते हैं फिर उन्हें बर्तनों में रखते हैं, उन्हें पीते हैं और उनसे बर्कत लेते हैं और उन्हें एक दूसरे को उपहार देते हैं क्योंकि वे यह आस्था रखते हैं कि यह बुराइयों को समाप्त कर देता है। हालाँकि यह एक भ्रष्ट आस्था, एक घृणित अपशकुन और एक घिनावनी बिदअत है जिसका इंकार और खंडन करना हर उस व्यक्ति के लिए ज़रूरी है जो उसके करने वाले को देखता है।

"अस्सुनन वल-मुबतदआत" (पृष्ठ 111 , 112).

चौथा :

इस महीने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन में घटित होने वाले महत्वपूर्ण गज़वात (सैन्य अभियान) और घटनायें

वे बहुत हैं और उनमें से कुछ का यहाँ चुनाव किया जा रहा है :

1- इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्ला कहते हैं :

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वयं "अब्वा" नामी युद्ध किया, जिसे "वुद्दान" भी कहा जाता है, और यह पहला गज़्वा है जिसे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वयं किया। यह सफर के महीने में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हिज्रत के बारहवें महीने के आरंभ में घटित हुआ, इसका झंडा हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ियल्लाहु अन्हु ने उठाया, जिसका रंग सफेद था। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मदीना पर सअद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु को प्रतिनिधि नियुक्त किया, तथा आप विशिष्ट रूप से मुहाजिरीन को लेकर निकले ताकि क़ुरैश के एक क़ाफिले का रास्ता रोकें, लेकिन कोई मामला पेश नहीं आया।

इस गज़्वा में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मख्शी बिन अम्र अज़-ज़मरी से - जो कि उस समय बनू ज़मरा का सरदार था - इस बात पर संधि किया कि आप बनू ज़मरा से युद्ध नहीं करेंगे और वे आप से युद्ध नहीं करेंगे, और आपके विरूद्ध किसी जत्थे की संख्या नहीं बढ़ायेंगे और आपके विरूध किसी दुश्मन की सहायता नहीं करेंगे, और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने और उनके बीच एक (संधि) पत्र भी लिखवाया, आप की अनुपस्थिति की अवधि पंद्रह दिन थी।

"ज़ादुल मआद" (3 / 164, 165)

2- तथा वह कहते हैं :

जब (3 हिज्री में) सफर का महीना था, "अज़ल" और "क़ारा" नामी क़बीलों के कुछ लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये और बताया कि उनके यहाँ इस्लाम का कुछ चर्चा है, और उन्हों ने आप से अनुरोध किया कि आप उनके साथ कुछ लोगों को उन्हें दीन की शिक्षा देने और क़ुरआन पढ़ाने के लिए भेज दें। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके साथ छः लोगों को भेजा - इब्ने इसहाक़ के कथन के अनुसार, जबकि बुखारी ने कहा है कि : वे दस लोग थे - और उनके ऊपर मर्सद बिन अबू मर्सद गनवी को अमीर नियुक्त कर दिया, और उन्हीं में खुबैब बिन अदी भी थे। वे सहाबा उन लोगों के साथ रवाना हो गये, जब वे - क़बीला हुज़ैल के - रजीअ़ नामी चश्मे पर पहुँचे तो उन्हों ने इन सहाबा के साथ विश्वास घात किया और इनके विरूद्ध हुज़ैल के क़बीले को भड़का दिया। वे लोग आकर इनको घेर लिये। फिर अधिकांश लोगों को क़त्ल कर दिया और खुबैब बिन अदी तथा ज़ैद बिन दसिना को बंदी बना लिया। फिर उन दोनों को मक्का लेजाकर बेच दिया। उन दोनों सहाबा ने बद्र के दिन उनके सरदारों को क़त्ल किया था।

"ज़ादुल मआद'' (3/244).

3- तथा वह कहते हैं :

और इसी महीने में अर्थात 4 हिज्री के सफर के महीने में "बीरे मऊना" की घटना घटी, जिसका सारांश यह है कि : अबू बरा आमिर बिन मालिक जो "मुलाइबुल असिन्नह" (भालों से खेलने वाला) के लक़ब से परिचित था, अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास मदीना आया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे इस्लाम का निमंत्रण दिया, परंतु वह मुसलमान नहीं हुआ और न ही उससे उपेक्षा किया। उसने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर! यदि आप अपने साथियों को नज्द वालों के पास उन्हें अपने धर्म का निमंत्रण देने के लिए भेजें तो मुझे आशा है कि वे उनके निमंत्रण को स्वीकार करेंगे। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि मुझे उन पर नज्द वालों से खतरा है। तो अबू बरा ने कहा : वे मेरे शरण में होंगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इब्ने इसहाक़ के कथन के अनुसार उसके साथ चालीस लोगों को भेजा, और सहीह बुखारी में है कि वे सत्तर लोग थे, और जो सहीह बुखारी में है वही सही है। और मुंज़िर बिन अम्र को जो बनू साइदा से ताल्लुक़ रखते थे और "मोतक़ लिल-मौत" के लक़ब से प्रसिद्ध थे, उन पर अमीर नियुक्त कर दिया। ये लोग प्रतिष्ठित, सर्वश्रेष्ठ मुसलमानों और उनके सरदारों और क़ारियों में से थे। ये लोग रवाना हुए यहाँ तक कि "मऊना" नामी कुँवे पर पहुँचे - जो बनू आमिर की ज़मीन और बनू सलीम के हर्रा के बीच स्थित है - उन्हों ने वहाँ पड़ाव डाला, फिर उम्मे सुलैम के भाई हराम बिन मिलहान को रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पत्र देकर अल्लाह के दुश्मन आमिर बिन तुफैल के पास भेजा। उसने उसे देखा तक नहीं और एक आदमी को आदेश किया जिसने उनको (हराम बिन मिलहान को) पीछे से भाला मारा, जब वह उनके शरीर में आर पार हो गया और उन्होंने खून देखा तो फरमाया : काबा के रब की क़सम! मैं सफल होगया। फिर उस अल्लाह के दुश्मन ने तुरंत बनू आमिर को, शेष लोगों से लड़ाई करने के लिये, गुहार लगाया। किंतु अबू बरा के पनाह के कारण उन्हों ने उसकी बात नहीं सुनी। फिर उसने बनू सलीम को पुकारा तो "उसैया", "रअल" और "ज़कवान" नामी क़बीलों ने उसकी पुकार का उत्तर दिया और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा को आकर घेर लिया, तो सहाबा ने भी लड़ाई की यहाँ तक कि सब के सब शहीद कर दिये गये, केवल कअब बिन ज़ैद बिन अल-नज्जार जीवित बचे, उन्हें शहीदों के बीच से घायल अवस्था में उठाकर ले जाया गया और वह खंदक़ (खाई) के युद्ध तक जीवित रहे। अम्र बिन उमैया ज़मरी और मुंज़िर बिन उक़बा बिन आमिर मुसलमानों के ऊँट चरा रहे थे। उन दोनों ने घटनास्थल पर चिड़ियों को मंडराते देखा तो मुंज़िर ने वहाँ पहुँच कर मुशरेकीन से लड़ाई की यहाँ तक कि अपने साथियों के साथ शहीद कर दिये गये और अम्र बिन उमैया को बंदी बना लिया गया। जब यह बतलाया गया कि वह "मुज़र" क़बीले से ताल्लुक़ रखते हैं तो आमिर ने उनके माथे के बाल को काटकर अपनी माँ की ओर से -जिस पर एक गर्दन आज़ाद करना अनिवार्य था - मुक्त कर दिया। अम्र बिन उमैया वापस लौटे, जब वह क़नात के छोर पर क़रक़रा नामी स्थान पर पहुँचे तो एक पेड़ के नीचे उतरे, बनू किलाब के दो आदमी आये और वे दोनों भी उनके साथ उतरे, जब वे दोनों सो गये तो अम्र ने उन्हें क़त्ल कर दिया और वह यह समझ रहे थे कि वह अपने साथियों का बदला ले रहे हैं, हालांकि उनके पास रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ से अहद व पैमान था जिसका उन्हे पता नहीं चला। जब वह मदीना आये और जो कुछ उन्हों ने किया था नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उससे अवगत कराया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : तुमने दो ऐसे व्यक्तियों की हत्या कर दी जिनकी दियत (रक्त धन) देना मेरे लिए अनिवार्य है।

"ज़ादुल मआद'' (3/246 – 248).

4- तथा इब्नुल क़ैयिम फरमाते हैं :

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का - (अर्थात खैबर की ओर) - निकलना मुहर्रम के महीने के अंत में हुआ था, उसके शुरू में नहीं था और उसको पराजित करना सफर के महीने में घटित हुआ।

"ज़ादुल मआद'' (3/339, 340)

5- तथा वह कहते हैं :

अध्याय : "क़ुत्बा बिन आमिर बिन हदीदा" के सरिय्या का ख़स्अम की ओर जाने का वर्णन।

यह 9 हिज्री के सफर के महीने में घटित हुआ, इब्ने सअद कहते हैं : उनका कहना है किः अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुत्बा बिन आमिर को बीस आदमियों के संग तबाला के छोर में खस्अम क़बीले की एक शाखा की ओर भेजा, और उन्हें आदेश दिया कि वह छापा मारें। वे लोग दस ऊँटों पर रवाना हुए जिन पर वे बारी बारी सवार होते थे। उन्हों ने एक आदमी को पकड़ा और उस से पूछताछ किया तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया (यानी चुप रहा), फिर वह आबादी वालों को पुकारने लगा और उन्हें सावधान करने लगा, तो उन्हों ने उसकी गर्दन मार दी। फिर वे ठहरे रहे यहाँ तक कि आबादी वाले सो गये, तो मुसलमानों ने उन पर छापा मारा और घमासान लड़ाई की यहाँ तक कि दोनों पक्षों के बहुत सारे लोग घायल हो गए, और क़ुत्बा बिन आमिर ने जिन्हें क़त्ल किया, क़त्ल किया। और वे (मुसलमान) ऊँटों, औरतों और भेड़-बकरियों को मदीना हाँक लाये। इसी घटना की कहानी में है कि वे लोग एकत्र हुए और मुसलमानों के पीछे सवार होकर निकले। तो अल्लाह तआला ने उनके ऊपर एक बड़ा सैलाब भेज दिया जो उनके और मुसलमानों के बीच रूकावट बन गया। चुनाँचे मुसलमान ऊँटों, भेड़-बकरियों और बंधकों को हाँक ले गए इस हाल में कि वे यह दृश्य देख रहे थे, परंतु उन तक पहुँचने में सक्षम नहीं थे, यहाँ तक कि मुसलमान उनकी आँखों से ओझल हो गये।

"ज़ादुल मआद'' (3/514).

6- तथा वह कहते हैं :

सफर 9 हिज्री में "उज़रा" का वफद बारह (12) आदमियों के साथ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, उनमें जमरह बिन नोमान भी थे। तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: कौन लोग हैं? तो उनके वक्ता ने कहा : जिनसे आप अपरिचित नहीं हैं, हम बनू उज़रा हैं, क़ुसै के अखयाफी (माँ जाई) भाई, हम ही हैं जिन्हों ने क़ुसै को सहयोग दिया, और मक्का से खुज़ाआ और बनू बक्र को दूर किया, (यहाँ) हमारे संबंध और रिश्ते नाते हैं। तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : आप लोगों का आना शुभ हो और आप अपने घर ही में उतरे हैं। वे इस्लाम ले आये, और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें शाम के विजय होने, और हिरक़्ल के अपने देश से दूर भागने की शुभसूचना दी, तथा उन्हें काहिना औरतों (तांत्रिका) से प्रश्न करने, और उन जानवरों को ज़ब्ह करने से मनाही कर दी जिसे वे ज़ब्ह किया करते थे, और उन्हें इस बात से सूचित किया कि उनके ऊपर केवल क़ुर्बानी अनिवार्य है, फिर उन्हों ने कुछ दिन रमला के घर पर क़ियाम किया फिर वे वापस चले गये। उन्हें उपहार से सम्मानित किया गया था।

"ज़ादुल मआद" (3 / 657)

पाँचवाँ :

सफर के महीने के विषय में झूठी हदीसों में जो कुछ वर्णित हुआ है :

इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह कहते हैं :

भविष्य में आने वाली तिथियों से संबंधित हदीसों का अध्याय :

उन्हीं में से एक यह है कि : हदीस में इस तरह उल्लिखित हो कि यह और यह तारीख, उदाहरण के तौर पर उसका यह कथन कि : जब यह और यह वर्ष होगा तो ऐसा और ऐसा घटित होगा, और जब यह और यह महीना होगा तो ऐसा और ऐसा घटित होगा।

और जैसाकि बदतरीन झूठे का यह कहना कि : जब मुहर्रम के महीने में चाँद ग्रहण होगा तो मँहगाई, युद्ध और बादशाह की व्यस्तता होगी, और जब सफर के महीने में चाँद ग्रहण होगा, तो ऐसा और ऐसा होगा।

इसी तरह इस झूठे ने सभी महीनों के बारे में कहा है।

इस अध्याय की सभी हदीसें झूठ और मनगढ़ंत हैं।

"अल-मनार अल-मुनीफ" (पृष्ठ. 64).

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञाना रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर