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क़ुरआन की शिक्षाएं

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क़ुरआन की शिक्षाएं

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إن الحياة الإنسانية لها جوانب شتى وشعب متعددة، والقرآن الكريم - الذي أُنزل لهداية الناس كافة، وفي جميع شؤونهم المختلفة - جاء بتعاليم وتوجيهات تُنظِّم حياة الإنسان والمجتمع الإنساني. وهذه مقالة باللغة الهندية يُسلِّط الضوء على ملخص تعاليم القرآن الكريم على وجه الإجمال؛ حيث لخَّص فيه أهم النقاط التي تُركِّز عليها آيات القرآن الحكيم في جميع مناحي الحياة.

    क़ुरआन की शिक्षाएं

    ] हिन्दी & Hindi &[ هندي

    साइट इस्लाम धर्म

    संपादनः अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह

    2014 - 1435

    تعاليم القرآن

    « باللغة الهندية »

    موقع دين الإسلام

    مراجعة: عطاء الرحمن ضياء الله

    2014 - 1435

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    बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

    मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।

    إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، وسيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وبعد:

    हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद :

    क़ुरआन की शिक्षाएं

    क़ुरआन की आयतों का सार

    मानव-जीवन के बहुत से पहलू हैं, जैसे : आध्यात्मिक, नैतिक, भौतिक, सांसारिक आदि। इसी तरह उसके क्षेत्र भी अनेक हैं, जैसे: व्यक्तिगत, दाम्पत्य, पारिवारिक, सामाजिक, सामूहिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि। क़ुरआन, मनुष्य के सम्पूर्ण तथा बहुपक्षीय मार्गदर्शक ईश-ग्रंथ के रूप में इन्सानों और इन्सानी समाज को शिक्षाएं देता है। इनमें से कुछ, यहां प्रस्तुत की जा रही हैं:

    ● एकेश्वरवाद से संबंधित शिक्षाएं तथा शिर्क का नकार

    ● परलोक जीवन से संबंधित शिक्षाएं

    ● सामाजिक शिष्टाचार से संबंधित शिक्षाएं

    ● माता-पिता से संबंधित शिक्षाएं

    ● अनाथों से संबंधित शिक्षाएं

    ● निर्धनों से संबंधित शिक्षाएं

    ● नैतिकता से संबंधित शिक्षाएं

    ● नैतिक बुराइयों के वास्तविक कारण

    ● ज्ञान-विज्ञान

    ● संतान से संबंधित शिक्षाएं

    एकेश्वरवाद से संबंधित शिक्षाएं एवं शिर्क का नकार

    1. अल्लाह एकता है (उसमें किसी प्रकार की अनेकता नहीं है)। वह किसी का मुहताज नहीं, सब उसके मुहताज हैं। न उसकी कोई संतान है न वह किसी की संतान है; और वह बेमिसाल, बेजोड़ है, कोई उसका समकक्ष नहीं है। (सार-112:1-4)

    2. अल्लाह ही हरेक का रब है। अतः उसी की बन्दगी (दासता) अपनाओ, यही सीधा मार्ग है। (सार-3:51)

    3. जो लोग (ईशग्रंथ में) अपनी ओर से गढ़कर झूठी बातें अल्लाह से जोड़ते रहे वे वास्तव में अत्याचारी हैं। (सार-3:94)

    4. तारे...,..., चांद, सूरज आदि, जिसके पक्ष में ईश्वर ने कोई प्रमाण अवतरित नहीं किया है, ईश्वर के ईश्वरत्व में साझीदार नहीं हैं क्योंकि ज़मीन और आसमानों की रचना तो ईश्वर ने की है। (सारांश-6:76-81)

    5. अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा कोई तुम्हारा उपास्य नहीं है। (सार-7:59, 7:65, 7:73, 7:85, 11:61, 11:84)

    6. बहुत सारे भिन्न-भिन्न प्रभुओं के बजाय वह एक अल्लाह बेहतर है जिसे सब पर प्रभुत्व प्राप्त है। (सार, 12:39)

    7. अल्लाह को छोड़कर जिनकी बन्दगी की जा रही है वे कुछ नाम हैं जिन्हें लोगों के पूर्वजों न रख लिए थे..., शासन-सत्ता अल्लाह के सिवाय किसी के लिए नहीं है। उसके आदेशानुसार, उसके सिवाय किसी की बन्दगी न करो, यही बिल्कुल सीधी जीवन-प्रणाली है। (सार, 12:40)

    8. उन चीज़ों की उपासना आख़िर क्यों, जो न सुनती हैं, न देखती हैं न किसी का कोई काम बना सकती हैं। (सार, 19:42)

    9. मैं ही अल्लाह हूं, मेरे सिवाय कोई पूज्य नहीं अतः मेरी ही बन्दगी करो। (सार, 20:14)

    10. लोगो, तुम्हारा पूज्य तो बस एक अल्लाह ही है जिसके सिवाय कोई और पूज्य नहीं है। हर चीज़ पर उसका ज्ञान हावी है। (20:98)

    11. अल्लाह बस शिर्क (अपना कोई साझीदार बनाए जाने) को माफ़ नहीं करता...जिसने किसी को अल्लाह का साझीदार ठहराया उसने बहुत बड़ा झूठ रचा और घोर पाप किया। (सारांश, 4:48)

    12. जिसने अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराया उस पर अल्लाह ने स्वर्ग को हराम कर दिया, उसका ठिकाना नरक है...। (सार, 5:72)

    13. अल्लाह के सिवाय दूसरों को पूज्य बनाने का क्या औचित्य है जबकि इसका प्रमाण ईश-ग्रंथों (क़ुरआन सहित) में नहीं है। (सार, 21:27)

    14. (पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से) पहले के ईशदूतों द्वारा भी अल्लाह ने यही शिक्षा अवतरित की थी कि उसके सिवाय कोई और पूज्य नहीं है अतः लोग उसी की बन्दगी करें। (सार, 21:25)

    15. अल्लाह को छोड़कर उन चीज़ों को पूजना उचित कैसे हो सकता है जो न कोई फ़ायदा पहुंचा सकती हैं, न नुक़सान। (सार, 21:66)

    16. अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवाय तुम्हारे लिए कोई पूज्य नहीं है। क्या तुम (ऐसे अनुचित कृत्य से) बचते नहीं हो? (सार, 23:32)

    17. ऐसी मूर्तियों की पूजा भला क्या करनी जो न किसी की पुकार-प्रार्थना सुन सकती हों, न कोई लाभ-हानि पहुंचा सकती हों ; सिर्फ़ इसलिए कि बाप-दादा ऐसा ही करते आए हैं? अस्ल में पूरे संसार का प्रभु तो वह (ईश्वर) है जो इन्सान को पैदा करता, मार्गदर्शन करता, खिलाता-पिलाता, बीमार हो जाने पर स्वास्थ्य देता, और मौत देता है और फिर दोबारा (पारलौकिक) जीवन वही प्रदान करेगा। (सार, 26:72-81)

    अल्लाह ईश्वर के अलावा जिनकी भी पूजा की जाती है वे रोज़ी (आजीविका) देने का सामर्थ्य नहीं रखते। (अतः) उसी से रोज़ी मांगो, उसी की बन्दगी करो, उसी के कृतज्ञ बनकर रहो। (मृत्यु पश्चात्) उसी की ओर पलटकर (परलोक में) जाने वाले हो। (सार, 29:17)

    18. कोई बड़ी मुसीबत पड़ने पर या ज़िन्दगी की आख़िरी घड़ी आ जाने पर ज़रा सच-सच बताओ कि क्या तुम अल्लाह के साथ ठहराए हुए साझीदारों से प्रार्थना करने के बजाय उन्हें भूलकर सिर्फ़ अल्लाह (ईश्वर) को ही नहीं पुकारते? (उसी से प्रार्थना नहीं करते?) (सार, 6:40,41)

    19. समुद्री तूफ़ान में घिर जाने पर तुम एकाग्रचित होकर, अल्लाह से ही, बचाने की प्रार्थनाएं करते हो, और जब वह तुम्हें बचा लेता है तो फिर असत्य रूप से धर्ती पर (ईश्वर के प्रति ही) विद्रोहात्मक नीति धारण कर लेते हो। लोगो यह दुनिया की ज़िन्दगी के थोड़े दिन के मज़े हैं, तुम्हारा यह विद्रोह तुम्हारे ही विरुद्ध पड़ रहा है, तुम्हें पलटकर अल्लाह ही के पास जाना है। (सार, 10:22,23, 17:67, 31:32)

    20. वही ईश्वर ही तो है जिसने तुम्हारे लिए धर्ती का बिछौना बिछाया, आकाश की छत बनाई, पानी बरसाया, पैदावार निकाल कर तुम्हारे लिए रोज़ी जुटाई। तुमको यह सब मालूम है, तो फिर दूसरों को अल्लाह का समकक्ष मत ठहराओ। (सार, 2:22)

    21. दाने और गुठली को फाड़कर पौधा और पेड़ उगानेवाला सजीव को निर्जीव से और निर्जीव को जीव से निकालनेवाला अल्लाह है। फिर तुम (उसे छोड़ दूसरों की बन्दगी व उपासना करके) किधर बहके चले जा रहे हो? (सार, 6:95)

    22. वही ईश्वर रात का पर्दा फाड़कर सुबह निकालता है। उसी ने रात को तुम्हारे आराम व सुकून का समय बनाया; चांद व सूरज के निकलने-डूबने का हिसाब (प्रणाली) निश्चित किया। तारों को ज़मीन और समुद्र के अंधेरों के बीच रास्ता जानने का साधन बनाया, आसमान से पानी बरसाया उससे तरह-तरह की वनस्पति उगाई, हरे-भरे खेत, पेड़ पैदा किए, उनसे तले-ऊपर चढ़े हुए (अनाज व फल के) दाने निकाले। इन सब में, समझ-बूझ रखने वालों के लिए (विशुद्ध एकेश्वरवाद की) निशानियां और स्पष्ट प्रमाण हैं। (सार, 6:96-99)

    23. तुम्हारा प्रभु, वास्तव में अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धर्ती को बनाया जो रात को दिन पर ढांक देता है, जिसने सूरज, चांद, तारे पैदा किए जो (अपने काम, गति व Orbiting आदि में) उसके आदेश के अधीन हैं। सृष्टि उसी की, आदेश उसी का, वही सारे संसारों का मालिक व पालनहार, स्वामी व प्रभु ; तो बस उसी से प्रार्थनाएं करो (किसी दूसरे से नहीं)(सार, 7:54-55)

    24. अल्लाह के सिवाय कोई नहीं जो उसके द्वारा डाली हुई किसी मुसीबत को तुम पर से टाल दे और अल्लाह कोई भलाई करना चाहे तो कोई भी शक्ति उसे इससे रोक नहीं सकती। अल्लाह के सिवा किसी ऐसे को न पुकारो जो तुम्हें न फ़ायदा पहुंचा सके न नुक़सान। (सार, 10:106-107)

    25. अगर अल्लाह के सिवाय दूसरे पूज्य भी होते तो ज़मीन व आसमान दोनों की व्यवस्था बिगड़ जाती। (सार, 21:22)

    26. अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है, उसके साथ कोई और दूसरा ख़ुदा नहीं है। कई और ख़ुदा भी होते तो हर एक अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और फिर वे एक-दूसरे पर चढ़ दौड़ते। (सार, 23:91)

    27. एकेश्वरवाद की कुछ निशानियाँ (प्रमाण) :

    (1) सभी इन्सानों को मिट्टी से पैदा करना (शरीर-रचना के सारे तत्व मिट्टी में मौजूद)

    (2) इन्सानों की सहजाति से ही उनके जोड़े बनाना, वे एक-दूसरे से सुकून-शान्ति पाते हैं, जोड़े में आपसी प्रेम व दयालुता पैदा कर देना

    (3) आसमानों और ज़मीन की सृष्टि

    (4) सारे इन्सानों में रंग और बोली की भिन्नता

    (5) रातों को सोने के और दिन को रोज़ी कमाने के अनुकूल बनाना

    (6) बिजली की चमक, तथा मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दगी प्रदान करने वाली बारिश

    (7) आसमानों और ज़मीन का क़ायम रहना

    (8) बेजान ज़मीन से अनाज और भांति-भांति के फल निकालना जिन्हें इन्सान पैदा नहीं कर सकते

    (9) वनस्पतियों और स्वयं मनुष्यों में जोड़े पैदा करना

    (10) रात पर से दिन को हटा लेना और अंधेरा छा जाना

    (11) सूर्य का अपनी कक्षा (Orbit) में चलना और चांद को अनेक चरणों से गुज़ारना

    (12) सारे नक्षत्रों का अपनी-अपनी कक्षा में एक हिसाब से तैरते जाना। (सार, 30:20-25, 36:33-40)

    28. विशुद्ध एकेश्वरवाद के तर्क का एक उदाहरण :

    जब तुम अपने दासों (नौकरों, सेवकों आदि) को अपने स्वामित्व में, अपने माल-दौलत में, अपने अधिकारों में शरीक होना पसन्द और बर्दाश्त नहीं करते तो फिर ईश्वर के प्रभुत्व, स्वामित्व व अधिकारों में दूसरों को साझी व समकक्ष क्यों बनाते हो? (भावार्थ, 30:28)

    29. क्या अल्लाह के सिवाय कोई और सृष्टा भी है जो तुम्हें आसमान व ज़मीन से रोज़ी देता हो? अल्लाह को हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है, वह अपनी सृष्टि-रचना में जैसी चाहता है अभिवृद्धि करता है। अपनी जिस रहमत का दरवाज़ा खोलना चाहे उसे कोई बन्द करनेवाला या जिसे वह बन्द कर दे उसे कोई खोलनेवाला नहीं है। उसके सिवाय कोई उपास्य नहीं, आख़िर तुम कहाँ धोखा खाए चले जा रहे हो? (सार, 35:1-3)

    30. वह (ईश्वर) जब किसी काम का इरादा करता है तो बस आदेश दे देता है कि ‘‘हो जा’’, और वह काम हो जाता है। उसके ही हाथ में हर चीज़ का पूर्ण अधिकार है (अर्थात् किसी चीज़ के लिए वह किसी पर निर्भर नहीं, किसी भी काम के लिए किसी पर आश्रित नहीं और अधिकार, सामर्थ्य, शक्ति आदि में कोई दूसरा उसका साझीदार नहीं)(सार, 36:82,83)

    31. जो कुछ ज़मीन में जाता है, उसमें से निकलता है, आसमान से उतरता और उसमें चढ़ता है, वह (ईश्वर) सब मुख्य व समवेत और गौण व अंश का ज्ञाता है। जो काम भी तुम करते हो उसे वह देख रहा है। ज़मीन व आसमानों के राज्य का मालिक है और फ़ैसले के लिए सारे मामले उसी की ओर जाते हैं, वह दिलों में छुपे हुए रहस्यों तक को जानता है। (सार, 57:4-6)

    32. धर्ती और आकाशों का शासन-सत्ता अल्लाह के लिए है उसके सिवाय कोई तुम्हारा संरक्षक, सहायक नहीं। (सार, 2:107)

    33. जिसने अल्लाह का सहारा थामा उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटने वाला नहीं है। वह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है। (सार, 2:256)

    34. अल्लाह राज्य का स्वामी है, जिसे चाहे दे, जिससे चाहे छीन ले, वह हर काम में समर्थ है। रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में। निर्जीव में से जीवधारी को निकालता है और जीवधारी में से निर्जीव को, और जिसे चाहता है अत्यधिक रोज़ी देता है। (सार, 3:26,27)

    35. आकाशों और धर्ती की सारी चीज़ें चाहे-अनचाहे अल्लाह की आज्ञाकारी हैं और उसी की ओर सब को पलटना है। (सार, 3:83)

    36. कोई प्राणी ईश्वर अल्लाह की अनुमति के बिना मर नहीं सकता, मौत का समय तो लिखा हुआ (अर्थात् निश्चित किया हुआ) है। (सार, 3:145)