يعاني من وساوس الشيطان في ذات الله

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translation लेखक : मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन
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अल्लाह के बारे में शैतानी वस्वसों से पीड़ित है

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अल्लाह के बारे में शैतानी वस्वसों से पीड़ित है

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سؤال أجاب عنه فضيلة الشيخ محمد صالح - حفظه الله -، ونصه: « رجل يوسوس له الشيطان بوساوس عظيمة فيما يتعلق بالله - عز وجل - وهو خائف من ذلك جداً فماذا يفعل ؟ ».

    अल्लाह के बारे में शैतानी वस्वसों से पीड़ित है

    يعاني من وساوس الشيطان في ذات الله

    ] fgUnh - Hindi -[ هندي

    मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन

    محمد بن صالح العثيمين

    अनुवाद : साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

    समायोजन : साइट इस्लाम हाउस

    ترجمة: موقع الإسلام سؤال وجواب
    تنسيق: موقع islamhouse

    2012 - 1433

    अल्लाह के बारे में शैतानी वस्वसों से पीड़ित है

    एक आदमी के दिल में अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के बारें में शैतान भयानक वस्वसे डालता रहता है, और वह इस से भयभीत है, ऐसी स्थिति में उसे क्या करना चाहिए?

    हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।

    प्रश्नकर्ता की समस्या के बारे में जो उल्लेख किया गया है जिसके परिणाम से वह डर रहा है, मैं उस से कहता हूँ : आप खुश हो जायें कि इसके अच्छे ही परिणाम होंगे, क्योंकि शैतान इन वस्वसों के द्वारा मोमिनों पर आक्रमण करता है ताकि उनके दिलों में शुद्ध अक़ीदा को डाँवाडोल कर दे, और उन्हें मानसिक परेशनी में डाल दे, ताकि उनका ईमान गंदला हो जाये, बल्कि यदि वे ईमान वाले हैं तो उनका जीवन ही बेमज़ा हो जाये।

    इस प्रश्नकर्ता की जो स्थिति है वह पहली स्थिति नहीं है जो किसी ईमान वाले के साथ पेश आयी और न ही यह अंतिम स्थिति है, बल्कि जब तक दुनिया में एक मोमिन भी मौजूद है यह बक़ी रहेगी, यह स्थिति सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को भी पेश आती थी, अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि : अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ सहाबा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये और आप से पूछा कि : हम अपने दिलों में ऐसी चीज़ पाते हैं जिसको बोलना हम बहुत गंभीर समझते हैं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा : "क्या तुम ऐसी बात पाते हो?" उन्हों ने उत्तर दिया : जी हाँ, आप ने कहा : "यह स्पष्ट ईमान है।" (मुस्लिम) तथा बुखारी व मुस्लिम में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ही से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम में से किसी के पास शैतान आता है और कहता है कि इसे किस ने पैदा किया? इसे किस ने पैदा किया? यहाँ तक कि कहता है कि तेरे रब को किस ने पैदा किया? जब वह इस हद तक पहुँच जाये तो उसे अल्लाह की पनाह मांगनी चाहिए और उस से बाज़ आ जाना चाहिए।"

    तथा इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक आदमी आया और कहा : मैं अपने मन में ऐसी बात सोचता हूँ कि मेरे लिए कोयला हो जाना उसे बोलने से बेहतर है। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सभी प्रशंसा अल्लाह के लिए है जिस ने उसके मामले को वस्वसे की तरफ लौटा दिया।" (अबू दाऊद)

    शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह "किताबुल ईमान" में फरमाते हैं : मोमिन आदमी शैतान के कुफ्र के वस्वसों से आज़माया जाता है जिन से उसका सीना तंग हो जाता है, जैसाकि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! हम में से एक आदमी अपने दिल में ऐसी चीज़ पाता है कि जिस को बालने से उसके लिए आसमान से धरती पर गिर पड़ना बेहतर होता है। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "यह स्पष्ट ईमान है।" और एक रिवायत में है कि जिस को बोलना बहुत गंभीर होता है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "हर प्रकार की प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है जिस ने उस की चाल को वस्वसे की तरफ लौटा दिया।'' अर्थात् इतनी बड़ी कराहत और घृणा के साथ इस वस्वसे का पैदा होना और उसे दिल से दूर करना स्पष्ट ईमान का पता देता है, उस मुजाहिद के समान जिस के पास उसका दुश्मन आता है तो वह उसे रोकता है यहाँ तक कि उस पर विजयी हो जाता है, तो यह बहुत बड़ा जिहाद है। यहाँ तक कि उन्हों ने आगे कहा : (इसी लिए धर्म का ज्ञान प्राप्त करने वालों और इबादत गुज़ारों के यहाँ ऐसे वस्वसे और सन्देह पाये जाते हैं जो दूसरों के यहाँ नहीं होते हैं, क्योंकि दूसरे लोग अल्लाह की शरीअत और उसके रास्ते पर नहीं चलते हैं, बल्कि वे अपनी ख्वाहिशात पर ध्यान देते है और अपने रब के ज़िक्र से गाफिल होते हैं, और शैतान का उद्देश्य भी यही है, जबकि ज्ञान और उपासना के साथ अपने रब की ओर ध्यान केंद्रित करने वाले लोगों का मामला इसके विपरीत होता है, शैतान उनका दुश्मन बना होता है और उन्हें अल्लाह से रोकना चाहता है।) उक्त किताब से जितना उल्लेख करना अपेक्षित था वह उसके पृ संख्याः 147, भारतीय संस्करण से समाप्त हुआ।

    अत: मैं इस प्रश्न करने वाले से कहता हूँ कि : जब आप को पता चल गया कि ये वस्वसे शैतान की ओर से हैं, तो इन से आप संघर्ष करें और उन्हें रोकने का कष्ट करें, और यह बात जान लें कि अगर आप इन से संघर्ष करते रहे, इन से मुँह मोड़ते रहे और इनके पीछे भागने से बचाव करते रहे, तो ये आप को कदापि नुक़सान नहीं पहुँचा सकते। जैसाकि पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत के सीनों में जो वस्वसे (कल्पनाएं) पैदा होते हैं उन्हें क्षमा कर दिया है जब तक कि वह उस पर अमल न करें या उसे मुँह से बाहर न निकालें।" (बुखारी व मुस्लिम)

    और अगर आप से कहा जाये कि : आप के दिल में जो वस्वसा पैदा होता है क्या आप उस पर विश्वास रखते हैं? क्या आप उसे सच्चा समझते हैं? क्या आप अल्लाह को उस से विशिष्ट कर सकते हैं? तो आप अवश्य कहें गे कि : हमारे लिए इस को ज़ुबान पर लाना भी उचित नहीं है, ऐ अल्लाह तू पाक व पवित्र है, यह तो बहुत बड़ा आरोप है। तथा आप उसे अपने दिल और ज़ुबान से नकार देंगे, और आप उस से घृणा करते हुए अति दूर भागेंगे। अत: वह मात्र वस्वसा और खटका है जो आप के दिल में आ जाता है, और वह शैतान का मायाजाल है जो मानव शरीर में खून के समान दौड़ता है, ताकि उसका सर्वनाश कर दे और उस के ऊपर उसके धर्म को गडमड कर दे।

    इसीलिए आप देखें गे कि साधारण चीज़ों के संबंध में शैतान आप के दिल में कोई सन्देह या आपत्ति नहीं डालता है, उदाहरण के तौर पर आप पूरब और पच्छिम में आबादी और बाशिन्दों से भरे हुए बड़े-बड़े और महत्वपूर्ण नगरों के बारे में सुनते हैं, लेकिन एक दिन भी आप के दिल में उनके मौजूद होने या उनके अंदर कोई खराबी होने कि वह वीरान और ध्वस्त है, रहने के योग्य नहीं है, और उस में कोई भी बाशिन्दा नहीं है .. इत्यादि, के बारे में शक पैदा नहीं होता है, क्योंकि उसके बारे में इंसान के अंदर शक पैदा करने में शैतान का कोई उद्देश्य नहीं है, लेकिन मोमिन के ईमान को नष्ट करने में शैतान का बहुत बड़ा उद्देश्य है, चुनाँचि वह अपने पूरे जत्थों के साथ इस बात का प्रयास करता है कि उसके दिल में ज्ञान और मार्गदर्शन की जल्ती हुई रौशनी को बुझा दे, और उस को सन्देह और संकोच के अंधेरे में ढकेल दे। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमारे लिए वह सफल दवा (उपचार) बताया है जिसमें इस बीमारी से शिफा है, और वह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है कि : "तो आदमी अल्लाह की पनाह -शरण- मांगे और उस से रूक जाये।" और जब इंसान इस से रूक जायेगा और अल्लाह के पास जो उपहार है उसकी इच्छा और चाहत करते हुये निरंतर उसकी उपासना में लगा रहेगा तो अल्लाह की तौफीक़ से वह (वस्वसा और शक) समाप्त हो जायेगा। इसलिए इस विषय में आप के दिल में जो भी अनुमान पैदा होते हैं उन से मुँह फेर लीजिए और हाँ जबकि आप अल्लाह की उपासना करते है, उसको पुकारते और उसका सम्मान और आदर करते हैं, और अगर आप किसी को अल्लाह के बारे में वह बात कहते हुए सुन लें जिसका आप के दिल में वस्वसा आता है, तो यदि आप से हो सके तो उसे क़त्ल कर देंगे, अत: आप के दिल में जो वस्वसा पैदा होता है उसकी कोई वास्तविकता और वस्तुस्थिति नहीं हैं, बल्कि वह मात्र कल्पनायें, वस्वसे और खटके हैं जिनका कोई आधार नहीं।

    और यह एक सदुपदेश है जिसका सारांश यह है :

    1- अल्लाह की पनाह मांगना और इन अनुमानों से पूर्णत: रूक जाना, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस का आदेश दिया है।

    2- अल्लाह तआला का ज़िक्र करना और निरंतर रूप से इन वस्वसों में पड़ने से अपने आप को नियंत्रण में रखना।

    3- अल्लाह तआला का आज्ञापालन करते हुए और उसकी प्रसन्नता को ढूँढ़ते हुए गंभीरता के साथ अल्लाह की उपासना करना और नेक कार्य में व्यस्त रहना। जब आप पूरी तरह गंभीरता और वास्तविकता के साथ इबादत की ओर अपना ध्यान आकर्षित कर लेंगे तो अल्लाह ने चाहा तो इन वस्वसों में फंसना भूल जायेंगे।

    4- अधिक से अधिक अल्लाह की ओर पलटना और दुआ करना कि इस समस्या से आप को राहत दे।

    अल्लाह तआला से दुआ है कि आप को हर बुराई और दुर्घटना से सुरक्षित और कुशल मंगल रखे।

    फज़ीलतुश्शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्ल के फतावा व रसाईल का संग्रह, (1/57-60)

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