translation लेखक : अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़
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भूकंपों की अधिकता के कारण

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भूकंपों की अधिकता के कारण

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سؤال أجاب عنه فضيلة الشيخ محمد صالح حفظه الله، ونصه: «تعرَّضَتْ العديد من الدول لبعض الزلازل؛ مثل: تركيا، والمكسيك، وتايوان، واليابان، وبلدان أخرى؛ فهل لهذا أي دلالات؟».

    भूकंपों की अधिकता के कारण

    سبب كثرة الزلازل

    ] fgUnh - Hindi -[ هندي

    अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़

    عبد العزيز بن عبد الله بن باز

    अनुवाद : साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

    समायोजन : साइट इस्लाम हाउस

    ترجمة: موقع الإسلام سؤال وجواب
    تنسيق: موقع islamhouse

    2012 - 1433

    भूकंपों की अधिकता के कारण

    कई सारे देश जैसे कि : तुर्की, मेक्सिको, ताईवान, जापान, और अन्य देश ... भूकंप से ग्रस्त हुए हैं तो क्या ये किसी बात के संकेतक हैं ?

    हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दया और शान्ति अवतरित हो अल्लाह के पैगंबर, आप के परिवार, आप के साथियों और आप के द्वारा निर्देषित मार्ग पर चलने वालों पर, अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान के बाद :

    सर्वशक्तिमान और पवित्र अल्लाह जो कुछ भी फैसला करता और मुक़द्दर करता है, उस में वह सर्वबुद्धिमान और सर्वज्ञानी है, जिस तरह कि उस ने जो कुछ धर्म संगत बनाया है और जिस का हुक्म दिया है उस में वह सर्वबुद्धिमान और सर्वज्ञानी है, और वह पवित्र अल्लाह जो भी निशानियाँ चाहता है पैदा करता और मुक़द्दर करता है ; ताकि बन्दों को डराये धमकाये, और उन के ऊपर अल्लाह का जो हक़ अनिवार्य है उन्हें उस का स्मरण कराये, और उन्हें अपने साथ शिर्क करने, और अपने आदेश का प्रतिरोध करने और अपने निषेद्ध को करने से सावधान करे, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है : "हम तो लोगों को केवल धमकाने के लिए निशानियाँ भेजते हैं।" (सूरतुल इस्रा : 59)

    तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया : "जल्द ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ दुनिया के किनारों में भी दिखायें गे और खुद उन के अपने वजूद में भी, यहाँ तक कि उन पर खुल जाये कि सच यही है। क्या आप के रब का हर चीज़ से अवगत होना काफी नहीं।" (सूरत फुस्सिलत : 53)

    तथा अल्लाह तआला का फरमान है : "आप कह दीजिये कि वही तुम पर तुम्हारे ऊपर से कोई अज़ाब भेजने या तुम्हारे पैरों के नीचे से (अज़ाब) भेजने या तुम्हें अनेक गिरोह बनाकर आपस में लड़ाई का मज़ा चखाने की ताक़त रखता है।" (सूरतुल अंआम : 65)

    तथा इमाम बुखारी ने अपनी सहीह में जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि जब अल्लाह तआला का यह फरमान कि : "आप कह दीजिये कि वही तुम पर तुम्हारे ऊपर से कोई अज़ाब भेजने में सक्षम है" तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मैं तेरे चेहरे की शरण में आता हूँ।) "या तुम्हारे पैरों के नीचे से" तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मैं तेरे चेहरे की पनाह में आता हूँ।) (सहीह बुखारी 5/193)

    तथा अबुश्शैख अल असबहानी ने इस आयत की तफसीर (व्याख्या) कि : "आप कह दीजिये कि वही तुम पर तुम्हारे ऊपर से कोई अज़ाब भेजने में सक्षम है" में मुजाहिद से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : चींख, पत्थर और तेज़ हवा (का अज़ाब)। या "तुम्हारे पैरों के नीचे से" मुजाहिद ने कहा : भूकंप और पृथ्वी का धंसा दिया जाना।

    इस में कोई शक नहीं कि इन दिनों बहुत सारे छेत्रों में जो भूकंप आ रहे हैं वे उन निशानियों में से हैं जिन के द्वारा अल्लाह सुब्हानहु व तआला अपने बन्दों को डराता और धमकाता है, तथा इस जगत में जो भी भूकंप और प्राकृतिक आपदायें इत्यादि आती हैं जिन के द्वारा मानव को हानि पहुँचती है और उन के लिए कई प्रकार के कष्ट का कारण बनती है, सब के सब शिर्क और गुनाहों के कारण हैं, जैसाकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है : "और जो कुछ भी कष्ट तुम्हें पहुँचता है वह तुम्हारे अपने हाथों के करतूत का (बदला) है। और वह बहुत सी बातों को माफ कर देता है।" (सूरतुश्शूरा : 30)

    तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "आप को जो भलाई पहुँचती है वह अल्लाह तआला की तरफ से है और जो बुराई पहुँचती है वह स्वयं आप के अपनी तरफ से है।" (सूरतुन निसा : 79)

    और अल्लाह तआला ने पिछले समुदायों के बारे में फरमाया : "फिर तो हम ने हर एक को उस के पाप की सज़ा में धर लिया, उन में से कुछ पर हम ने पत्थरों की बारिश की, उन में से कुछ को तेज़ चींख ने दबोच लिया, उन में से कुछ को हम ने धरती में धंसा दिया और उन में से कुछ को हम ने पानी में डुबो दिया। अल्लाह तआला ऐसा नहीं कि उन पर ज़ुल्म करे बल्कि वही लोग अपनी जानों पर जु़ल्म करते थे।" (सूरतुल अनकबूत : 40)

    अत: मुकल्लफ (वह व्यक्ति जिस पर शरीअत के आदेश का पालन करना अनिवार्य हो गया हो) मुसलमानों और अन्य लोगों पर अनिवार्य है कि वे अल्लाह के सामने तौबा करें, उस के धर्म पर स्थिरता के साथ जम जायें, और जिस शिर्क और अवज्ञा से उस ने रोका है उस से बचाव करें, ताकि उन्हें दुनिया और आखिरत में सभी बुराईयों से मोक्ष और छुटकारा प्राप्त हो, और ताकि अल्लाह तआला उन से हर आपदा को हटा दे और उन्हें हर प्रकार की भलाई प्रदान करे, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है : "और यदि उन नगरों के निवासी ईमान ले आते तथा तक़्वा (संयम) अपनाते तो हम उन पर आकाश एवं धरती की बरकतें (विभूतियाँ) खोल देते, किन्तु उन्हों ने झुठलाया तो हम ने उनके (कु)कर्मो के कारण उन्हें पकड़ लिया।" (सूरतुल आराफ: 96)

    तथा अल्लाह तआला ने अह्ले किताब (यहूदियों और ईसाईयों) के बारे में फरमाया : "और अगर वे तौरात और इंजील और उन धर्म शास्त्रों की पाबन्दी करते जो उन की तरफ उन के रब की ओर से उतारी गई है तो अपने ऊपर और पैरों के नीचे से खाते।" (सूरतुल माइदा : 66)

    तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "क्या फिर भी इन बस्तियों के निवासी इस बात से निश्चिन्त हो गए हैं कि उन पर हमारा प्रकोप रात के समय आ पड़े जिस समय वह नीन्द में हों। तथा क्या इन बस्तियों के निवासी इस बात से निश्चिन्त हो गये हैं कि उन पर हमारा प्रकोप दिन चढ़े आ पड़े जिस समय वह अपने खेलों में व्यस्त हों। क्या वह अल्लाह की पकड़ से निश्चिन्त (निर्भय) हो गये, सो अल्लाह की पकड़ से वही लोग निश्चिन्त होते हैं जो छति ग्रस्त (घाटा उठाने वाले) हैं।" (सूरतुल आराफ: 97-99)

    अल्लामा इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : "कभी कभी अल्लाह सुब्हानहु व तआला धरती को सांस लेने की अनुमति देता है तो उस में बड़े बड़े भूकंप पैदा होते हैं, और इस से वह अपने बन्दों के अन्दर भय और डर, अल्लाह की तरफ एकाग्रता, गुनाहों का परित्याग, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाना, और पछतावा पैदा करता है, जैसाकि किसी सलफ (पूर्वज) ने धरती पर भूकंप आने के समय कहा थ कि : तुम्हारा पालनहार तुम से क्षमा याचना करवा (गुनाहों की माफी मंगवा) रहा है। तथा उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने जब मदीना में भूकंप आया तो लोगों को सम्बोधित किया और उन्हें सदुपदेश किया, और कहा : यदि इस में दुबारा भूकंप आया तो मैं तुम्हारे साथ इस में निवास नहीं करूंगा।" (इब्नुल क़ैयिम की बात समाप्त हुई)

    सलफ सालेहीन (पूर्वजों) से इस विषय में बहुत सारे कथन वर्णित हैं ..

    अत: भूकंप और उस के अलावा अन्य निशानियों, तेज़ हवा, और बाढ़ आने के समय अल्लाह सुब्हानहु व तआला से तौबा करने में जल्दी करना, उस के सामने रोना गिड़गिड़ाना, उस से सुरक्षा और शान्ति का प्रश्न करना, अधिक से अधिक उस का ज़िक्र करना और क्षमा याचना करना अनिवार्य है, जैसाकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ग्रहण के समय फरमाया : "जब तुम इसे देखो तो अल्लाह तआला के ज़िक्र व अज़कार (स्मरण), उस से दुआ करने और उस से क्षमा याचना करने (गुनाहों की माफी मांगने) की तरफ जल्दी करो।" यह सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम की हदीस का एक अंश है। (सहीह बुखारी 2/30, सहीह मुस्लिम 2/628).

    तथा गरीबों और मिस्कीनों पर दया करना और उन पर दान करना भी मुस्तहब है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "तुम (दूसरों पर) दया करो, तुम पर (भी) दया की जाये गी।" इसे इमाम अहमद ने रिवायत किया है (2/165)

    "दया करने वालों पर अति दयालू (अल्लाह तआला) दया करता है, तुम धरती वालों पर दया करो, आकाश वाला तुम पर दया करे गा।" इसे अबू दाऊद (13/285) और तिर्मिज़ी (6/43) ने रिवायत किया है।

    तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "जो दया नहीं करता उस पर दया नहीं की जाती।" (सहीह बुखारी 5/75, सहीह मुस्लिम 4/1809)

    तथा उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहिमहुल्लाह से वर्णित है कि वह अपने गवर्नरों के पास भूकंप आने के समय खैरात करने के लिए पत्र लिखते थे।

    तथा हर बुराई से बचाव और आफियत के कारणों में से अधिकारियों का मूर्खों के हाथ को पकड़ने, उन्हें हक़ को अपनाने पर मजबूर करने, उन के बारे में अल्लाह की शरीअत के अनुसार फैसला करने, भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने में शीघ्रता से काम लेना भी है, जैसाकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है : "मोमिन पुरूष और महिलाएं आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं, वे भलाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं, नमाज़ क़ाईम करते हैं और ज़कात देते हैं, तथा अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (फरमांबरदारी) करते हैं, यही लोग हैं जिन पर अल्लाह तआला दया करेगा, अल्लाह तआला शक्तिवान और ग़ल्बे वाला और हिक्तम वाला है।" (सूरतुत्तौबा : 71)

    तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया कि : "जो अल्लाह की मदद करेगा अल्लाह भी उस की ज़रूर मदद करेगा, बेशक अल्लाह तआला बहुत ताक़तवर और प्रभुत्ता वाला (गालिब) है। ये वे लोग हैं कि अगर हम इन के पैर धरती पर मज़बूत कर दें तो ये पाबन्दी से नमाज़ अदा करेंगे और ज़कात देंगे और अच्छे कामों का हुक्म देंगे और बुरे कामों से मना करेंगे, और सभी कामों का परिणाम अल्लाह के हाथ में है।" (सूरतुल हज्ज : 40 – 41)

    तथा अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने फरमाया : "और जो इंसान अल्लाह से डरता है अल्लाह उस के लिए छुटकारे का रास्ता निकाल देता है। और उसे ऐसी जगह से रोज़ी देता है जिस का उसे अन्दाज़ा भी न हो। और जो व्यक्ति अल्लाह पर भरोसा करेगा तो अल्लाह तआला उस के लिये पर्याप्त है।" (सूरतुत्तलाक़ : 2-3)

    इस अर्थ की आयतें और भी हैं।

    तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जो आदमी अपने भाई की आवश्यकता में लगा रहता है, अल्लाह तआला उसकी आवश्यकता में होता है।" (सहीह बुखारी 3/98, सहीह मुस्लिम 4/1996).

    तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस ने किसी मोमिन से दुनिया की परेशानियों में से कोई परेशानी (संकट) को दूर कर दिया तो (उसके बदले) अल्लाह तआला उस से क़ियामत के दिन की परेशानियों में से एक परेशानी को दूर कर देगा, और जिस ने किसी तंगदस्त (कठिनाई पीड़ित) पर आसानी की तो अल्लाह तआला दुनिया और आख़िरत में उस पर आसानी फरमायेगा, और जिस ने किसी मुसलमान पर पर्दा डाला तो अल्लाह तआला उस पर दुनिया व आखिरत दोनों मे पर्दा डालेगा, तथा अल्लाह तआला बन्दे की मदद में रहता है जब तक कि बन्दा अपने भाई की मदद में होता है।" (सहीह मुस्लिम 4/2074) इस अर्थ की हदीसें और भी हैं।

    तथा अल्लाह तआला ही से इस बात का प्रश्न है कि समस्त मुसलमानों के मामलों को सुधार (संवार) दे, उन्हें दीन की समझ प्रदान करे, और उन्हें उस पर स्थिरता और सभी गुनाहों से अल्लाह से तौबा करने की तौफीक़ दे, तथा मुसलमानों के शासकों और उन के मामलों के ज़िम्मेदारों का सुधार करे, उन के द्वारा हक़ की मदद करे, और उन के द्वारा बातिल को असहाय कर दे, और उन्हें अपने बन्दों में अल्लाह की शरीअत को लागू करने की तौफीक़ दे, और उन्हें तथा समस्त मुसलमानों को पथ भ्रष्ट करने वाले फित्नों (उपद्रवों) और शैतान के वस्वसों (प्रलोभन) से सुरक्षित रखे, यक़ीनन वह इस का स्वामी और इस पर शक्तिमान है।

    तथा अल्लाह तआला हमारे सन्देष्टा मुहम्मद, आप के परिवार और साथियों, तथा क़ियामत के दिन तक भलाई के साथ उन का अनुसरण करने वालों पर दया और शान्ति अवतरित करे।

    अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ -रहिमहुल्लाह-