नबी स॰ की पत्नियों का सम्मान
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Full Description
नबी स॰ की पत्नियों का सम्मान
توقير زوجات المصطفى صلى الله عليه وسلم
باللغة الهندية
इस उपदेश को माजिद बिन सुलैमान ने
لفضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/ حفظه الله
ترجمة : سيف الرحمن حفظ الرحمن التيمي
उपदेश का विषय:
नबी स• का अधिकार तथा आपकी पत्नियों का सम्मान
प्रथम उपदेश
إن الحمد لله، نحمده و نستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا ومن سيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له ومن يضلل فلا هادى له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، و أشهد أن محمدا عبده ورسوله
(يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله حق تقاته ولا تموتن إلا و أنتم مسلمون ){ سورة آل عمران رقم الآية ١٠٢}
(يا أيها الناس اتقوا ربكم الذي خلقكم من نفس واحدة وخلق منها زوجها و بث منهما رجالا كثيرا و نساء و اتقوا الله الذى تسائلون به والارحام إن الله كان عليكم رقيبا ). { سورة النساء رقم الآية: ١}
(يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله و قولوا قولا سديدا يصلح لكم أعمالكم و يغفر لكم ذنوبكم و من يطع الله و رسوله فقد فاز فوزا عظيما ).{سورة الأحزاب رقم الآية: ٧٠- ٧١}
अल्लाह की प्रशंसा के पश्चात्, सबसे उत्तम शब्द अल्लाह के शब्द हैं, और सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शन अल्लाह के रसूल का है। और सबसे बुरी बात धर्म में नई बात पैदा करनी है, और हर नई बात बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही आग में ले जाने वाली है।
हे मुसलमानो! अल्लाह से डरो, उसको अपना निरीक्षक समझो, उसके आदेश का पालन करो तथा उसकी अवज्ञा एवं नाफरमानी से बचो। और इस बात को जान लो कि अहलेसुन्नत वल जमाअत की आस्था की सिद्धांतों में से यह भी है कि अल्लाह के रसूल की बिवियों का सम्मान किया जाए, कयोंकि अल्लाह ने उनहें प्रतिष्ठा के शिखर तथा आदर- सत्कार की चरम सीमा पर पहुंचाया है, बल्कि उनहें समस्त मुसलमानों की माताओं की उपाधि दी है ,जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है:" नबी स• अधिक समीप हैं ईमान वालों के उनकी प्राणों की अपेक्षा, और आपकी पत्नियाँ उनकी मातायें हैं ", और इस आयत में पवित्रता, सम्मान, श्रद्धा, आदर,सत्कार तथा आवभगत का वह संदेश है जो हर मुसलमान पर आप • की पत्नियों के अधिकारों की रक्षा को अनिवार्य घोषित करता है,और उसे उचित ढंग से अदा करने का आह्वान करता है।
नबी साहब की बिवियों के आदर और सम्मान को अनिवार्य करने वाला कारण यह है कि उनहोंने अल्लाह के रसूल के मार्गदर्शन को याद किया और उसे उम्मत के दरम्यान फैलाया, विशेष रूप से आईशा सिद्दिक़ा रज़• जो नबी स॰ से अधिक संख्या में रिवायत करने वाले वयक्तिओं में से थीं।
जहाँ तक बात हज़रत ख़दीजा रज़ की है, तो आप नबी स॰ की पहली पत्नी हैं, और वह नबी स॰ को साहस देती थीं, आप को इस बात का आश्वासन देती थीं कि आप जिस मार्ग पर चल रहे हैं वही सत्य है, और यह कि अल्लाह तआला कभी भी आपको अपमानित नहीं करेगा, जैसा कि उस वाक़्य से ज्ञात होता है जब आप हज़रत ख़दीजा के पास आते हैं, और आपका हृदय धड़क रहा होता है, क्योंकि पहली बार हिरा की गुफा में जिब्रील अलैहिस्सलाम आप पर इश्वरीय ज्ञान लेकर अवतरित होते हैं। अतः हज़रत ख़दीजा आप को दिलासा दीं, फिर लेकर अपने चचेरे भाई वरक़ह बिन नौफल के पास गईं, और वह अज्ञानता के युग में ईसाई हो गये थे, अतः वरक़ह बिन नौफल ने आप को आश्वस्त किया और इस तथ्य को स्पष्ट किया कि जो चीज़ आप पर उतरी है वह वास्तव में अल्लाह की ओर से इश्वरीय ज्ञान(वह्य) है।{सहीह बुख़ारी:3 तथा सहीह मुस्लिम: 160 में इस वाक़्य का विवरण देखें}
शैख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिया कहते हैं: अहले सुन्नत वल जमाअत के सिद्धांतों में से है कि वह मुमिनों की माँएं, अर्थात रसूल स॰ की बिवियों का आदर करते हैं, और विश्वास रखते हैं कि मरणोपरांत भी वह आप ही की बिवियाँ रहेंगीं ,विशेष रूप से हज़रत ख़दीजा रज़॰ जो आप स॰ के अधिकांश बच्चों की माँ हैं,और आप पर ईमान लाने वाली तथा आप को समर्थन प्रदान करने वाली प्रथम महिला हैं। और नबी स॰ की दृष्टि में वह अति सम्मानित एवं गरीमामंडित थीं।
और आईशा सिद्दिक़ा रज़ ॰ जिन के विषय में अल्लाह के रसूल ने कहा है: आईशा का महत्व औरतों पर उसी प्रकार है जिस प्रकार सरीद( एक प्रकार की गोश्त- मिश्रित खिचड़ी) का महत्व शेष भोजनों पर है"।अल्लामा इब्ने तैमिया की बात पुरी हुई
{मजमुउल फतावा; ३\१५४: बुख़ारी शरीफ़; ३७६९,मुस्लिम शरीफ़; २४४६}
और नबी स॰ की बिवियों के अधिकारों के महत्व की ओर संकेत करने वाली चीज़ उनके ऊपर विशेष रूप से दरुद भेजना भी है, अर्थात उनके लिए दुआ करना है कि अल्लाह उनकी स्तुति करे तथा उनके महत्व को बढ़ाये। अबु हुमैद साअदी से वर्णित है कि लोगों ने पूछा: हे अल्लाह के रसूल हम कैसे आप पर दरुद भेजें?
तो आपने कहा:कहो,हे अल्लाह! आशीर्वाद दे मुहम्मद तथा आपकी पत्नियों एवं संतानों को जैसा कि तुम ने इब्राहीम एवं इब्राहीम की संतान को दिया, और कृपा कर मुहम्मद, उनकी पत्नियाँ और संतान पर जैसा कि तुने इब्राहीम की संतान पर किया,वस्तुतः तु प्रशंसनीय एवं यशस्वी है।
और रसूल की बिवियों के अधिकारों में से यह भी है कि उनके लिए क्षमा की प्रार्थना की जाये, उनकी विशेषताओं का स्मरण किया जाये, उनके महत्वों का वर्णन किया जाये और उनकी प्रशंसा की जाए। और वह इस लिए क्योंकि अल्लाह के रसूल से उनका सीधा संपर्क एवं निकट संबंध है ,और इस उम्मत की शेष औरतों पर उनहें महत्व प्राप्त है।
हे मुमिनो! नबी स• की बिवियों को गंदगी तथा मलिनता से पवित्रता का क़ुरआन ने प्रमाण प्रस्तुत किया है, जैसा कि अल्लाह तआला ने कहा है:"अल्लाह चाहता है कि मलिनता को तुम से दूर कर दे,हे नबी के घर वालीयो! तथा तुम्हें पवित्र कर दे अति पवित्र। "। इब्ने जरीर रह॰ का कहना है: अल्लाह तआला तुम्हें व्यभिचार, बुराई और निर्लज्जता से पवित्र करना चाहता है हे मुहम्मद के घर वालीयो! और तुम्हें उस गंदगी से पुर्णरुप से सुरक्षित करना चाहता है जो अल्लाह के नाफरमानों और अवज्ञाकारियों में विधमान होती है।
और इसी कारण नबी स॰ की पत्नियों पर कीचड़ उछालना तथा उन पर कोई आरोप लगाना आप स॰ के लिए अति कष्टदायक बात है। और अल्लाह तआला ने अपने इस कथन के माध्यम से नबी स॰ को कष्ट पहुंचाने को अवैध घोषित किया है, अल्लाह का वह फरमान यह है:" वास्तव में जो लोग अल्लाह तथा उसके रसूल को कष्ट देते हैं उन पर दुनिया तथा आख़िरत में अल्लाह का अभिशाप है, और अल्लाह ने उनके लिए बड़ी यातना तैयार कर रखी है "।हे मुमिनो! और नबी स॰ की बिवियों के सम्मान के विपरीत वह आस्था भी है जिस को राफज़ी लोग अपनाए हुए हैं, अल्लाह की उन पर लानत हो। उन लोगों ने हज़रत आईशा पर व्यभिचार का आरोप तथा कलंक लगाने में मुनाफिक़ों का साथ दिया था, अतः इस बुरी आस्था के द्वारा वह अल्लाह की वंदना करते थे। और यह बहुत बड़ा कुफ़्र है, अल्लाह हमें इस से सुरक्षित रखे । क्योंकि जो लोग हज़रत आईशा पर व्यभिचार का आरोप लगाते हैं, वह उस सूचना को सत्य नहीं मानते जो क़ुरआन में सुरह नुर के आरंभ में आई है, अल्लाह तआला का फरमान है:" वास्तव में जो लोग कलंक घड़ लाये हैं वह तुम्हारे ही भीतर के एक गिरोह हैं, तुम उसे बुरा न समझो, बल्कि वह तुम्हारे लिए अच्छा है। उनमें से प्रत्येक के लिए जितना भाग लिया उतना पाप है और जिस ने भार लिया उसके बड़े भाग का तो उसके लिए बड़ी यातना है।
क्यों जब उसे ईमान वाले पुरुषों तथा स्त्रियों ने सुना तो अपने आप में अच्छा विचार नहीं किया तथा कहा कि यह खुला आरोप है"। यहाँ तक कहा:" और क्यों नहीं जब तुम ने इसे सुना तो कह दिया कि हमारे लिए योग्य नहीं कि यह बात बोलें। हे अल्लाह! तु पवित्र है! यह तो बहुत बड़ा आरोप है ।अल्लाह तुम्हें शिक्षा देता है कि पुनःइस जैसी कभी बात न कहना। यदि तुम ईमान वाले हो।
अल्लामा इब्ने कसीर रह॰ ने कहा है: और समस्त विद्वानों की इस बात पर सहमति है कि जो व्यक्ति भी इस आयत के पश्चात् हज़रत आईशा के प्रति अभद्र शब्द का प्रयोग करेगा, उन पर कलंक लगायेगा, और इस आयत में वर्णित तथ्य के बाद भी उन पर आरोप लगायेगा; तो वह निश्चित रूप से काफिर है, कयोंकि वह क़ुरआन का विरोधी है"?{ तफसीर इब्ने कसीर; सुरह नुर: २३}
यह कुछ लाभदायक बातें हैं जो नबी स॰ की बिवियों के सम्मान तथा उनकी प्रतिष्ठा के विपरीत बातों से संबंधित हैं। अल्लाह तआला उन सबसे प्रसन्न हो।
अल्लाह तआला हमें तथा आप लोगों को इस बड़ी किताब (क़ुरआन) में बरकत दे, और उस में जो उत्तम उपदेश तथा अच्छी बातें हैं उस से हमें तथा आप लोगों को लाभ प्रदान करे, मैं अपनी इस बात को कहता हूँ, और मैं अपने तथा आप लोगों के लिए समस्त पापों से अल्लाह से क्षमा चाहता हूँ, अतः आप लोग भी उस से क्षमा मांगें,वास्तव में वह पश्चाताप करने वालों को क्षमा प्रदान करता है।
द्वितीय संदेश:
الحمد لله وكفى، وسلام على عباده الذين اصطفى، أما بعد.
हे मुसलमानो! और आप स॰ की वह पत्नियाँ जिनके साथ आपने वैवाहिक संबंध स्थापित किया है, वह ग्यारह हैं।
१- ख़दीजा बिनते खुवैलिद
२- आईशा सिद्दिक़ा बिन्ते अबु बकर सिद्दीक़
३-सौदा बिन्ते ज़मआ
४- हफ्सह बिन्ते उमर बिन ख़त्ताब
५-उम्मे हबीबा,रमलह बिन्ते अबी सुफियान रज़॰
६- उम्मे सल्मह, हिन्द बिन्ते अबी उमैया बिन अलमुग़ीरह,अलक़रशीयह रज़॰
७-ज़ैनब बिन्ते जहश रज़॰
८-ज़ैनब बिन्ते ख़ुज़ैमा हिलालीया रज़॰
९- जुवैरिया बिन्ते हारिस रज़॰
१०- सुफैया बिन्त हुय्य बिन अख़तब
११- मैमुना बिन्त हारिस हिलालीया रज़॰
फिर जान लो! (अल्लाह तुम लोगों पर दया करे) यह सत्य है कि अल्लाह तआला ने तुम्हें एक बड़े कार्य का आदेश दिया है ,अतः अल्लाह कहता है:" नि:संदेह अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते नबी पर दरुद भेजते हैं। हे ईमान वालो! उन पर अधिक दरुद तथा सलाम भेजो "। और नबी स॰ ने भी अपनी उम्मत को जुमआ के दिन दरुद भेजने पर उभारते हुए कहा है :( सबसे उत्तम दिन जुमआ का दिन है, अतः उस दिन मेरे ऊपर अधिक संख्या में दरुद भेजो, क्योंकि तुम्हारा दरुद मेरे ऊपर प्रस्तुत किया जाता है), हे अल्लाह अपने बंदे और रसूल मुहम्मद स॰ पर दरुद एवं सलाम नाज़िल फरमा, और आपके साथियों से प्रसन्न हो जा, और आपके साथियों के साथियों तथा उन लोगों से भी हर्षित हो जा जिन्होंने उचित ढंग से प्रलय के दिन तक उनके मार्गों का अनुपालन किया।
हे अल्लाह मुसलमान तथा इसलाम को शक्ति प्रदान कर, और मिश्रण (शिर्क) तथा मिश्रणकारीयों को अपमानित कर, और अपने शत्रुओं अर्थात अपने दीन के शत्रुओं को नष्ट एवं ध्वस्त करदे,और अपने एकेश्वरवादी भक्तों को सहायता प्रदान कर, हे अल्लाह हमारे देशों में हमें शांति दे, हमारे(इमामों) सरदारों और शासकों में सुधार पैदा फरमा, और उनहें ऐसा मार्गदर्शक बना जो स्वयं सत्य पाथ पर अग्रसर हों, हे अल्लाह जो हमें, इसलाम को तथा मुसलमानों को कष्ट और हानी पहुचाना चाहे, उसे तू स्वयं में व्यस्त कर दे, और उसके षडयंत्र को उसी पर लौटा दे। हे अल्लाह हम से मुल्यवृधि, संक्रामक रोग, सूद तथा ज़िना (व्यभिचार) को दूर कर दे, हे अल्लाह हमें भूकंप, क्लेश,वेदना तथा दुर्भाग्य से बचा जो छुपा तथा स्पष्ट हो,उसे विशेष रूप से हमारे देश तथा सामान्य रूप से समस्त मुसलमानों के देशों से दूर रख। हे अल्लाह! हम से संक्रमण और महामारी को उठा ले , हम वास्तव में मुसलमान हैं। हे अल्लाह! मुसलमानों के समस्त शासकों को अपनी किताब को दृढ़ता प्रदान करने और धर्म को प्रतिष्ठित एवं सम्मानित करने की तौफ़ीक़ दे, और और उनहें अपने शासितों पर दयावान बना। हे रब्ब! हमें इस संसार में भी भलाई दे और मरणोपरांत भी भलाई से नवाज़, और हमें नर्क की अग्नि से बचा।
हे अल्लाह अपने बंदे और रसूल मुहम्मद स॰ पर दरुद एवं सलाम नाज़िल फरमा, और आपके साथियों से प्रसन्न हो जा, और आपके साथियों के साथियों तथा उन लोगों से भी हर्षित हो जा जिन्होंने उचित ढंग से प्रलय के दिन तक उनके मार्गों का अनुपालन किया।
अल्लाह के भक्तो! अल्लाह न्याय तथा उचित व्यवहार का आदेश देता है, पड़ोसियों को दान करने का उपदेश देता है, और व्यभिचार, बुराई तथा वैश्यावृति से मना करता है, वह तुम्हें उपदेश देता है ताकि तुम नसीहत प्राप्त कर सको। अतः अल्लाह को याद करो जो सबसे बड़ा है, वह तुम्हें याद करेगा, और उसके उपहारों पर उस का आभार प्रकट करो वह उस में और वृद्धि करेगा। और अल्लाह तआला का स्मरण सबसे बड़ा कार्य है,और तुम जो कुछ भी करते हो उस से अल्लाह तआला भलीभांति परिचित है।
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इस उपदेश को माजिद बिन सुलैमान ने १९/ रबीउस्सानी १४४२ हिजरी को सऊदी अरब के जूबैल शहर में तैयार किया।