يريدون ترك الصلاة في المسجد وأداءها في قاعة المحاضرات ليتأثر غير المسلمين !

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वे मस्जिद में नमाज़ छोड़कर सभागार में पढ़ना चाहते हैं ताकि ग़ैर मुसलमान लोग उस से प्रभावित हों !

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वे मस्जिद में नमाज़ छोड़कर सभागार में पढ़ना चाहते हैं ताकि ग़ैर मुसलमान लोग उस से प्रभावित हों !

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سؤال أجاب عنه الفريق العلمي بموقع الإسلام سؤال وجواب، ونصه: « في الجامعة التي أدرس فيها نقوم بتنسيق أسبوع دعوي توعوي كل سنة ، حيث نقوم بدعوة غير المسلمين في الجامعة باستخدام تقنيات مختلفة ، هذه السنة جاء المنظمون بفكرة جديدة ، واقترحوا أن نصلي إحدى الصلوات في إحدى قاعات الجامعة بدلا من المسجد ؛ وذلك بغرض إبراز شعائر الإسلام ومِن ثَم تتكاثر التساؤلات لديهم عن الإسلام ، ولكني في الحقيقة غير مطمئن بشرعية هذه الطريقة لأنها إذا نجحت فستتكرر عدة مرات في السنوات القادمة . فما حكم مثل هذا الفعل ؟ وهل إذا تكررت في كل سنَة تصبح من قبيل البدعة ؟».

    वे मस्जिद में नमाज़ छोड़कर सभागार में पढ़ना चाहते हैं ताकि ग़ैर मुसलमान लोग उस से प्रभावित हों !

    يريدون ترك الصلاة في المسجد وأداءها في قاعة المحاضرات ليتأثر غير المسلمين !

    ] fgUnh - Hindi -[ هندي

    अनुवाद : साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

    समायोजन : साइट इस्लाम हाउस

    ترجمة: موقع الإسلام سؤال وجواب
    تنسيق: موقع islamhouse

    2012 - 1433

    वे मस्जिद में नमाज़ छोड़कर सभागार में पढ़ना चाहते हैं ताकि ग़ैर मुसलमान लोग उस से प्रभावित हों !

    मैं जिस विश्वविद्यालय में पढ़ता हूँ उसमें हम प्रति वर्ष एक निमंत्रण संबंधी सप्ताह संगठित करते हैं, जहाँ हम विश्वविद्यालय में गैर मुसलमानों को विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करके आमंत्रित करते हैं। इस वर्ष प्रबंधकों ने एक न्या विचार पेश किया है और उन्हों ने यह प्रस्ताव रखा है कि हम एक नमाज़ मस्जिद के बदले विश्वविद्यालय के एक हॉल में पढ़ें, इसका मक़सद इस्लाम के प्रतीकों का प्रदर्शन है, फिर इसके बाद वे इस्लाम के बारे में अधिक प्रश्न करेंगे, किंतु मैं वास्तव में इस तरीक़े की वैधता से संतुष्ट नहीं हूँ, क्योंकि यदि यह सफल रहा तो आने वाले वर्षों में दोहराया जायेगा। तो इस तरह के काम का क्या हुक्म है ? और क्या अगर यह प्रति वर्ष किया जाये तो बिद्अत की गणना में आयेगा ?

    हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

    सर्व प्रथम :

    हम आपके इस्लाम के निमंत्रण का लोगों में प्रसार करने की उत्सुकता पर आभारी हैं, तथा हम सुन्नत का पालन करने और शरीअत का विरोध न करने पर आपकी उत्सुकता पर आपके के शुक्र गुज़ार हैं, और हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आपके प्रयासों को आसान बना दे और आप लोगों को सर्वश्रेष्ठ बदला प्रदान करे।

    दूसरा :

    जमाअत की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना हर उस व्यक्ति पर अनिवार्य है जो सामान्य आवाज़ में अज़ान को सुनता है जबकि उसके सुनने में कोई रूकावट न हो और न हीं माइक्रोफोन के द्वारा उसकी आवाज को बढ़ाई या ऊंची की गयी हो, और विद्वानों के राजेह (ठीक) कथन के आधार पर जमाअत की नमाज़ उस मस्जिद में अनिवार्य है जहाँ अज़ान दी जाती है।

    तथा अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या : (38881) का उत्तर देखिए।

    लेकिन . . . किसी वैध ज़रूरत या उचित हित का पाया जाना संभव है जो मुसलमानों के एक दल के लिए मस्जिद के अलावा जगह में नमाज़ पढ़ने को वैध ठहराता हो।

    इसमें कोई संदेह नहीं कि गैर मुसलमानों को इस्लाम की दावत देना एक महान हित है, यदि आप लोगों का अधिक गुमान यह है कि आप लोगों का इस हॉल में नमाज़ पढ़ना उन्हें प्रभावित करेगा, और संभव है कि उनमें से कुछ के इस्लाम स्वीकारने का कारण बन जाए तो हॉल में नमाज़ पढ़ने में कोई रूकावट नहीं है, अतः आप लोग अज़ान देंगे, इक़ामत कहेंगे और जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ेंगे।

    और यदि यह हर साल दोहराया गया तो भी बिदअत नहीं होगा, क्योंकि उसका उद्देश्य इस प्रतीक का प्रदर्शन करके और गैर मुसलमानों को आमंत्रित करके शरई हित को प्राप्त करना है, लेकिन उसके लिए हर साल या हर महीने या इसके समान किसी एक दिन को निर्धारित नहीं किया जायेगा, , बल्कि उसमें मामला ज़रूरत पर आधारित होगा, फिर दिनों के बीच बदलाव किया जाता रहेगा और सबसे उचित दिन का चयन किया जायेगा जिसमें अधिक से अधिक लोग एकत्र होते हों और मुसलमानों की सबसे बड़ी संख्या उनको देख सकें।

    और अल्लह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

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